Wednesday, 27 February 2013


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....FRENSS....''UNIVRSS..PLANET...AND...'''HUMAN....'''''
...''O...J...O...N...__L..E...Y...A...R...''''...i...S...'''''D..i..S..K..A..N..E..K..T..'''OF...''SUN..''''
''CHALO...AB...KOI...DUSARA...''PLANET...'''DHHUN''DHHANA..SHUROO..KAR...DO...
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ab...aapko...'''''vigyan..''bhi..nhi..bachha..sakta...kyo...ki...wo...'''s0.''raha..hai,,...{..rshiya..pe..gira..huaa..''ulka_pat...}..''en...''vegyaniko...ko...''pata..bhi..na..chala...{..enki..''hab'bal..''dur'bin..''}..''bhi..''..'''fel...''ho..gai....'''ab...''sirf...''koi...''d...a...i...v...i...'''__p..o..w..e..r..'''hi...dhhoondhhani..hogi...''lekin..use..to...''sab..''A.N.D.HH.A._V.i.S.H.A.V.A.S.''''KAHTE..H..A..i..'''''N..'''''FIR...VIGYAN..KO..KYA..KHOGE????

''my...dear...friendssss...+..'univrsss..or...__univrsss..??

...+...u...n...i...v...a...r...'..ss..''=...'''shoodhha...hawa..{..0..2..}....''shoodhha...''bhojan...''....shoodhha...'v...i...c...h...a...r...''
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save...''u..n..i..v..r..r..ss'''

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2 comments:

  1. ता २7/२/२०१७/_,संध्याकाल
    ' 8*57
    श्रिदुर्गारक्ताम्बरा शक्तिपीठ ,संस्थापक अध्यक्ष
    हम स्वामि शिशुविदेहानंद सरस्वती तिवारी महाराज ' अग्निहोत्रितिवारी'
    तिवारी का बाडा
    कारंजालाड (दत्त) 444105 जिला वाशिम महाराष्ट्र

    माॅ मीराबाई ह तिवारी द्वारा आयोजित कार्यक्रम सव्वाकरोड मिट्टी के शिवलिंग निर्माण में विश्व के अनेकानेक व्यक्ति

    ग्लोबल वार्मिंग एवं भूमंडलीय औष्णिकरण पर सन 1994/2005/ से कार्य अध्यात्मिक पद्धति से शुरू है

    पहलाचरण एकतालिसलाख ग्यारह हजार पाचसौ का पुर्ण हो चूका,
    अब
    दुसराचरण एकतालिसलाख ग्यारहहजार मिट्टि के शिवलिंग निर्माण का शुरू है ,
    ।। अथातों soil जिद्न्यासा।।


    Soil is a very
    Important material of our universe .
    It is having very
    Important Property of retaining Frequency .
    That's why soil is used as a tool
    For various Spiritual Processes for Problems of
    Universe . Nowadays Global warming is the Biggest problem,To eradicate this Problem MyseLf swamishishu videhanand TiwariMaharaj " Founder and President " of Maa Durga Raktambara Shaktipeeth at KaranJaLad in Maharashtra state in india
    Is doing a very Powerful Spiritual Process of Preparing
    1.25 Crores of ShivaLingm Made of soil

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  2. मनुष्य इतना अशांत इतना असहिष्णु इतना बैचेन क्यों है ? उसे स्वार्थ और मोह ने इतना अंधा क्यों कर रखा है....क्योंकि मनुष्य का सारा चिंतन अहंकार पर केंद्रित है और धन उसके मूल में है ।मेरा धर्म , मेरा परमात्मा, मेरा देश, मेरा परिवार, मेरा घर सिर्फ मैं और , मैं , । सारा जीवन वह ,मैं , इकट्ठा करने में लगा देता है और मर कर तो मरता ही है ,जीते जी भी मर जाता है अहंकार को भरने का बहाना चाहिए आदमी को और अहंकार कभी भरता देखा नहीं गया । इसकी भुख बहुत ही बड़ी है वह अपने मालिक को ही खा जाता है ।
    यदि आपके पास अहंकार भाव है तो समझ लेना फिर आपको किसी और शत्रु की जरुरत ही नही क्योंकि अहंकार वो सब काम कर देगा शायद जो काम कोई महाशत्रु भी न कर सके। अहंकार बड़ा ही शक्तिशाली होता है। जिनके पास रुपया पैसा या अन्य भौतिक संपदाएं नहीं है फिर भी वह खूब मस्त रहते हैं सुख की नींद सोते हैं और अपने चारों और आनंद देखते हैं इस से प्रकट है कि धन दौलत के या साधनों के न होने से सच्चे सुख में कोई कमी नहीं आती अमीरों का भी दुखी रहना और गरीबों का भी सुखी होना इस बात का प्रमाण है कि सुख का वास्तविक स्थान बाहर नहीं है बाहर की वस्तुओं में नहीं है मन और अंतकरण की एकता में दोनों के मिलन में ही सुख है इसी को योगिक शब्दावली में आत्मा और परमात्मा का मिलन कह सकते हैं इस मिलन का ही दूसरा नाम योग है आत्मा और परमात्मा के मिलन से दोनों के योग से एक ऐसे आनंद का आविर्भाव होता है जिसकी तुलना संसार के अन्य किसी भी सुख से नहीं की जा सकती इसी सुख को परमानंद ( जीवनमुक्ति ब्राह्मनिर्वाह आत्मोपलब्धि प्रभु दर्शन ) आदि नामों से पुकारा जाता है मनुष्य के मन का वस्तुतः कोई अस्तित्व नहीं है वह आत्मा का ही एक उपकरण औजार या यंत्र है।
    पदार्थों में समस्या नहीं है हमारे उपयोग करने में समस्या है। कभी-कभी विष की एक अल्प मात्रा भी दवा का काम करती है और दवा की अत्याधिक मात्रा भी विष बन जाती है। विवेक से, संयम से, जगत का भोग किया जाये तो कहीं समस्या नहीं है।
    संसार का विरोध करके कोई इससे मुक्त नहीं हुआ। बोध से ही इससे ज्ञानीजनों ने पार पाया है। संसार को छोड़ना नहीं, बस समझना है। परमात्मा ने पेड़-पौधे, फल-फूल, नदी, वन, पर्वत, झरने और ना जाने क्या- क्या हमारे लिए नहीं बनाया ? हमारे सुख के लिए, हमारे आनंद के लिए ही तो सबकी रचना की है।
    संसार की निंदा करने वाला अप्रत्यक्ष में भगवान् की ही निंदा कर रहा है। किसी चित्र की निंदा चित्र की नहीं अपितु चित्रकार की ही निंदा तो मानी जाएगी। हर चीज भगवान् की है, कब, कैसे, कहाँ, क्यों और किस निमित्त उसका उपयोग करना है यह समझ में आ जाये तो जीवन को महोत्सव बनने में देर ना लगेगी।

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