*ता 25/7/2018 | दोपहर 12"16--12"16*
*श्रिदुर्गारक्ताम्बरा शक्तिपीठ ,संस्थापक अध्यक्ष*
*हम स्वामि शिशुविदेहानंद सरस्वती तिवारी महाराज ' अग्निहोत्रितिवारी'*
*तिवारी का बाडा*
*कारंजालाड (दत्त) 444105 जिला वाशिम महाराष्ट्र*
*ग्लोबल वार्मिंग एवं भूमंडलीय औष्णिकरण पर सन 1994/2005/ से *कार्य अध्यात्मिक पद्धति से शुरू है*
*पहलाचरण एकतालिसलाख ग्यारह हजार पाचसौ का पुर्ण हो चूका,*
*अब*
*दुसराचरण एकसष्टलाख ग्यारहहजार मिट्टि के शिवलिंग निर्माण का शुरू है ,*
*॥। अथातों वृक्षसंवर्धन जिद्न्यासा।।*
*एकसठलाख ग्यारहहजार शिवलिंगम् का अभिषेकम् पुजनम्*
*दुसराचरण पूर्ण हो गया है॥*
*माँ*
*मीराबाई ह तिवारि द्वारा*
*आयोजित कार्यक्रम सव्वासौकरोड मिट्टी के शिवलिंगम् निर्माण*
*एकसष्ठ लाख ग्यारहहजार नौ सौ (६१०००००"११हजार नौ सौ )*
*।। अथातों वैदिक वृक्ष जिद्न्यासा ।।*
*श्रिदुर्गारक्ताम्बरा शक्तिपिठ, संस्थापक अध्यक्ष *स्वामिशिशुविदेहानन्द'स्वामिशिशुसत्यविदेहानन्द सरस्वति तिवारीमहाराज *कारंजालाड(दत्त)४४४१०५ जिला वाशिम के*
*माँ मिराबाई हरीकिसन तिवारि के मार्गदर्शन में*
*शक्तीपिठ में सब वृक्षसंवर्धन के कार्य होते है।*
*।। अथातों वृक्षसंवर्धन जिद्न्यासा ।।*
*माँ मिराबाई ह तिवारि ,उन पौधो का अनावरण् करती हुई*
*।। अथातों भक्त जिद्न्यासा ।।*
*श्रिदुर्गारक्ताम्बरा शक्तिपिठ ,संस्थापक अध्यक्ष *स्वामिशिशुविदेहानन्दस्वामिशिशुसत्यविदेहानन्द सरस्वति *तिवारीमहाराज , के तत्वावधान में*
*विशाल*
*पौधरोपण एवं*
*षोषखड्डा = रेनवाटर हार्वेस्टिंग , ,ओर प्रीय मित्रों, अनुयायियों ,और सदस्यों *को हम*
*स्वामिशिशुविदेहानन्दस्वामिशिशुसत्यविदेहानन्द सरस्वति* *तिवारीमहाराज*
*आवाहन करते है*..
*शिवलिंगम् निर्माण में शामिल हुए।*
*।। अथातों भक्त जिद्न्यासा।।*
*माँ मिराबाई हरीकिसन तिवारि* *द्वारा*
सौ बजाज को *नंबर २ का बेलवृक्ष का* ( १९५६८०२) का पौधा प्रदान कीया ।
*शक्तिपिठ* मे और भी सकारात्मकता के साथ *वृक्ष प्रदानीय कार्य*
इस कार्य का क्रम है , *सम्ब्न्धीत व्यकति, समूह* , सन्गठन ,को वह
*पौधै*
*वितरित करना जो नंबर डाले* हुए हो ,और फिर *सम्ब्न्धीत व्यक्ति, समुह या* *सन्गठन के नामरूप की* *रजिस्टर में उल्लेखना् ,वृक्ष का नंबर*
उनकी रजीस्टर मे साइन , *उनका पूर्ण नामपता*,जिससे भविष्य में *अनुगमन् कर सकें* ,अवलोकन कर सकें ,और *जल* *सन्रक्षण भी सुनिश्चित करसके*।
*वह केवल् एक पौधा नहीं* *है*वहशक्तिपिठ मे *निर्माणित्*
*संवर्धित*
*एक*
*सदस्य*
*है*
*मित्रों*
*यहसब*
*आपके स'स्नेह और सहयोग के*
*कारण हो रहा है*
*संसार के विभीन्न विषयक् समस्या पर पन्चान्ग*
*देखने आते है।।*
और शिवलिंगम् निर्माण मे शामीलहुऐ
॥ अथातों बरसात जिदन्यासा ।।
यह कहना अतिशयोक्ति होगी की संस्कृत माह फागुन का नाम बदलकर
आषाढ़
कर दिया जाऐ , लेकिन पिछले चार,पाँच वर्षो से फागुन और चैत्र माह के मध्य
खुब झमाझम बारीष होती है और....आषाढ़ आतेआते बादल गांवों और खेतों का रास्ता ही भुल जाते है।
और भी जादा चिन्तीत् करनेवाला प्रश्न यह है की बारिश का तिव्र बन रहा
डकैत सा स्वभाव् है ,,यह लगातार पाँचवा ( चौदहवाँ ) वर्षे है की वह अपराधी की तरह आती है और भगौड़े अपराधी कि तरह ,और आध पौने घन्टे मुसलाधार बरस करके निकल जाती है ।
गोवा , महाराष्ट्र , केरल , तामिलनाडु , कर्नाटक , उत्तर भारत में उत्तराखण्ड ,जम्मू कश्मीर , बिहार , बंगाल में वर्षा का अनिश्चित आक्रामक तेवर रहरह कर देखने को मिल रहा हैं ,हद तो यह है कि देश के कीसी प्रदेश के एक हिस्से में अतिवृष्टि भयावह खतरा पैदा हो जाता है ,और उसी प्रदेश के दुसरे इलाके मे भयावह सुखा दिखाइ देता है
एक बात पिछले कई वर्षो से देखी जा रही हैं कि मानसुन के आते ही
मौसम विभाग सहीत देश कि तमाम एजन्सीयां ,जो मानसुन भविष्यवाणीयाँ करती हैं मानसुन सामान्य रहने की बात कहने लगती है
लेकिन देखने वाली बात यह है कि मानसुन सामान्य रहने के बाद भी
देश के तमाम् हिस्से सुखे से जुझ़ रहे होते है ,मात्रा की हिसाब् से देखें तो बारिश कोई कम नही हो रही ,उलटे कुछ बढ़ी ही हैं ,
लेकिन प्रश्न यह है कि मानसुन मे ज्यादा बारिश होने के बाद भी
कई इलाकों और प्रदेशों को सुखे की मार क्यों झेलनी पड़ रही हैं।
पिछले कुछ साल से बारीश का ट्रेन्ड़ बहुत तेजी से बढ़ रहा है ,यह सिर्फ हमारे यहाँ ही नही हो रहा हे , पाकिस्तान, बान्गलादेश , नेपाल् ,श्रीलन्का, चिन ,और पुरे युरोप तक मे ऐसा हो रहा है।बारीश के ईस बदलते पैटर्न से साफसाफ बदलाव दिख रहा है, बारीश के ईस बदलतें पैटर्न से सिर्फ
लोगों को ही परेशानी नहीं हो रही है , ईससे हमारी कृषी खासकर ईसखेती की उत्पादकता पर असर पड़ रहा है।
हम सब जानते है कि बारीश हमारी अर्थव्यवस्था का अहम हिस्सा है ।
देश की जीड़ीपी में कृषी क्षेत्र की करीब 17 फीसदी जबकि
ग्रामीण अर्थव्यवस्था में 35 से 40 फीसदी से ज्यादा हिस्सेदारी है ।
मौसमविभाग की माने तो पिछले 66 वर्षो मे देश मे औसत या सामान्य बारिश 95 से 103 फीसदी के बीच रही है ।
देश मे जीतनी बारिश साल भर मे होती है उसमे से 70 से 79 प्रतिशत मानसुन मे होती है ।
मध्य और उत्तर पश्चिमी भारत मे तो मानसुन मे होनेवाली बारिश साल की कुल बारिश का 89 फीसदी तक होती है लेकिन... पिछले 16--17--साल से मानसुनी बारिश का यह आँकडा़ गड़बड़ाने लगी है ।
पर्यावरणिय लिहाज से बहुत संवेदनशील हिमालयी क्षेत्र मे भी
बारिश का मिजाज बहुत तेजी से बदल रहा है , ऊत्तराखण्ड मे ईसे आम लोगों के स्तर तक महसुस किया जा रहा है।
तकनीकी रूप से देखा जाऐ तो बारिश औसत के अनुरूप ही हो रही हैं ,
लेकिन ईसका अब पहले जैसा पँटर्न नही रहा है, एक जमाने में बारिश के दिनों में पहाड़ो मे लगनेवाला स्त्झ्ड़प्त्झ्ड़् अर्थात सात से दस दिनों तक लगातार रिमझिम होने वाली बारिश ,या युपीबिहार मे लगनेवाली झड़ी
किस्सेकहानियों की बात होकर रह गई है ।
इनकी जगह कम समय मे होनेवाली मुसलाधार बारिश ने ले ली है ।
बाढ़ की बढ़ती विभीषिका ईसी का नतीजा है ।
हमारे गणित के हिसाब् से यह " भुमण्डलीय औष्णिकरण " याने Global warming के चलते पैदा हुई है ।
ईस पँटर्न को रोकने का अगर गम्भीर प्रयास् न किया गया तो यह पृथ्वी प्लँनेट समाप्त हो जाऐगा ।
और
हमारे ( हम Global warming पर 1988_1994___ से कार्य कर रहे हैं, हमारे सदसदगुरुदेव अखण्डानंदत्रिलोकचंदव्यास जी ने ही ईसलीए हमे ' सौरमण्डलेश्वर ' की उपाधि प्रदान की) हमारे मुताबिक अगर पुरे मानसुन
के सीजन मे 130--160--- घन्टो तक धीमी और संयमीत बारिश नहीं होती तो धरती का भू--जल रिचार्ज नही होता ।
ईसीलीए धीमी बारिश का होना विश्व के अस्तित्व के लिए बहुत जरुरी है ।
दरअसल जो बारिश पीछले 15-16- वर्षो से उसकी तीव्रता मे 14--15-- फीसदी की बढो़त्तरी हुई है , इसको फिर से पुरानी गति पर लाने के लिए
वैश्विक औष्णिकरण और Climate change को बढावा देनेवाली
गतीविधियां ' खास तौर पर मानवजनित कारकों ' पर अन्कुश लगाना
होगा , सबसे मुख्य बात है कि हमे प्रकृति के साथ ' एडजेस्टमेन्ट् '
करना पड़ेगा ।। प्रकृति के अनुरूप आचरण करना पड़ेगा ,तभी वर्षा का बिगडता मिजाज सन्तुलित लद एवं समयबद्ध हो सकता है।
ईसके लिऐ हमने " Swamishishuvidehanand sarswati tiwari Maharaj karanJaLad Experiment " 99999 करोड़ ,हमारा बनाया हुआ श्रीदुर्गाकरुणास्तवस्तोत्रजगतगुरूस्रोत्र के 'निन्यान्नबे हजारृनौसौ निव्यान्नबे पाठ् यह कार्यक्रम बनाया है, इसके घरघर पाठ् एवं
हमारी बनाई विधीद्वारा हवन करना चाहिए।।
सभी लोग जुड़ जाऐ ।।
और
शिवलिंगम् निर्माण में शामील हुऐ ।।
*श्रिदुर्गारक्ताम्बरा शक्तिपीठ ,संस्थापक अध्यक्ष*
*हम स्वामि शिशुविदेहानंद सरस्वती तिवारी महाराज ' अग्निहोत्रितिवारी'*
*तिवारी का बाडा*
*कारंजालाड (दत्त) 444105 जिला वाशिम महाराष्ट्र*
*ग्लोबल वार्मिंग एवं भूमंडलीय औष्णिकरण पर सन 1994/2005/ से *कार्य अध्यात्मिक पद्धति से शुरू है*
*पहलाचरण एकतालिसलाख ग्यारह हजार पाचसौ का पुर्ण हो चूका,*
*अब*
*दुसराचरण एकसष्टलाख ग्यारहहजार मिट्टि के शिवलिंग निर्माण का शुरू है ,*
*॥। अथातों वृक्षसंवर्धन जिद्न्यासा।।*
*एकसठलाख ग्यारहहजार शिवलिंगम् का अभिषेकम् पुजनम्*
*दुसराचरण पूर्ण हो गया है॥*
*माँ*
*मीराबाई ह तिवारि द्वारा*
*आयोजित कार्यक्रम सव्वासौकरोड मिट्टी के शिवलिंगम् निर्माण*
*एकसष्ठ लाख ग्यारहहजार नौ सौ (६१०००००"११हजार नौ सौ )*
*।। अथातों वैदिक वृक्ष जिद्न्यासा ।।*
*श्रिदुर्गारक्ताम्बरा शक्तिपिठ, संस्थापक अध्यक्ष *स्वामिशिशुविदेहानन्द'स्वामिशिशुसत्यविदेहानन्द सरस्वति तिवारीमहाराज *कारंजालाड(दत्त)४४४१०५ जिला वाशिम के*
*माँ मिराबाई हरीकिसन तिवारि के मार्गदर्शन में*
*शक्तीपिठ में सब वृक्षसंवर्धन के कार्य होते है।*
*।। अथातों वृक्षसंवर्धन जिद्न्यासा ।।*
*माँ मिराबाई ह तिवारि ,उन पौधो का अनावरण् करती हुई*
*।। अथातों भक्त जिद्न्यासा ।।*
*श्रिदुर्गारक्ताम्बरा शक्तिपिठ ,संस्थापक अध्यक्ष *स्वामिशिशुविदेहानन्दस्वामिशिशुसत्यविदेहानन्द सरस्वति *तिवारीमहाराज , के तत्वावधान में*
*विशाल*
*पौधरोपण एवं*
*षोषखड्डा = रेनवाटर हार्वेस्टिंग , ,ओर प्रीय मित्रों, अनुयायियों ,और सदस्यों *को हम*
*स्वामिशिशुविदेहानन्दस्वामिशिशुसत्यविदेहानन्द सरस्वति* *तिवारीमहाराज*
*आवाहन करते है*..
*शिवलिंगम् निर्माण में शामिल हुए।*
*।। अथातों भक्त जिद्न्यासा।।*
*माँ मिराबाई हरीकिसन तिवारि* *द्वारा*
सौ बजाज को *नंबर २ का बेलवृक्ष का* ( १९५६८०२) का पौधा प्रदान कीया ।
*शक्तिपिठ* मे और भी सकारात्मकता के साथ *वृक्ष प्रदानीय कार्य*
इस कार्य का क्रम है , *सम्ब्न्धीत व्यकति, समूह* , सन्गठन ,को वह
*पौधै*
*वितरित करना जो नंबर डाले* हुए हो ,और फिर *सम्ब्न्धीत व्यक्ति, समुह या* *सन्गठन के नामरूप की* *रजिस्टर में उल्लेखना् ,वृक्ष का नंबर*
उनकी रजीस्टर मे साइन , *उनका पूर्ण नामपता*,जिससे भविष्य में *अनुगमन् कर सकें* ,अवलोकन कर सकें ,और *जल* *सन्रक्षण भी सुनिश्चित करसके*।
*वह केवल् एक पौधा नहीं* *है*वहशक्तिपिठ मे *निर्माणित्*
*संवर्धित*
*एक*
*सदस्य*
*है*
*मित्रों*
*यहसब*
*आपके स'स्नेह और सहयोग के*
*कारण हो रहा है*
*संसार के विभीन्न विषयक् समस्या पर पन्चान्ग*
*देखने आते है।।*
और शिवलिंगम् निर्माण मे शामीलहुऐ
॥ अथातों बरसात जिदन्यासा ।।
यह कहना अतिशयोक्ति होगी की संस्कृत माह फागुन का नाम बदलकर
आषाढ़
कर दिया जाऐ , लेकिन पिछले चार,पाँच वर्षो से फागुन और चैत्र माह के मध्य
खुब झमाझम बारीष होती है और....आषाढ़ आतेआते बादल गांवों और खेतों का रास्ता ही भुल जाते है।
और भी जादा चिन्तीत् करनेवाला प्रश्न यह है की बारिश का तिव्र बन रहा
डकैत सा स्वभाव् है ,,यह लगातार पाँचवा ( चौदहवाँ ) वर्षे है की वह अपराधी की तरह आती है और भगौड़े अपराधी कि तरह ,और आध पौने घन्टे मुसलाधार बरस करके निकल जाती है ।
गोवा , महाराष्ट्र , केरल , तामिलनाडु , कर्नाटक , उत्तर भारत में उत्तराखण्ड ,जम्मू कश्मीर , बिहार , बंगाल में वर्षा का अनिश्चित आक्रामक तेवर रहरह कर देखने को मिल रहा हैं ,हद तो यह है कि देश के कीसी प्रदेश के एक हिस्से में अतिवृष्टि भयावह खतरा पैदा हो जाता है ,और उसी प्रदेश के दुसरे इलाके मे भयावह सुखा दिखाइ देता है
एक बात पिछले कई वर्षो से देखी जा रही हैं कि मानसुन के आते ही
मौसम विभाग सहीत देश कि तमाम एजन्सीयां ,जो मानसुन भविष्यवाणीयाँ करती हैं मानसुन सामान्य रहने की बात कहने लगती है
लेकिन देखने वाली बात यह है कि मानसुन सामान्य रहने के बाद भी
देश के तमाम् हिस्से सुखे से जुझ़ रहे होते है ,मात्रा की हिसाब् से देखें तो बारिश कोई कम नही हो रही ,उलटे कुछ बढ़ी ही हैं ,
लेकिन प्रश्न यह है कि मानसुन मे ज्यादा बारिश होने के बाद भी
कई इलाकों और प्रदेशों को सुखे की मार क्यों झेलनी पड़ रही हैं।
पिछले कुछ साल से बारीश का ट्रेन्ड़ बहुत तेजी से बढ़ रहा है ,यह सिर्फ हमारे यहाँ ही नही हो रहा हे , पाकिस्तान, बान्गलादेश , नेपाल् ,श्रीलन्का, चिन ,और पुरे युरोप तक मे ऐसा हो रहा है।बारीश के ईस बदलते पैटर्न से साफसाफ बदलाव दिख रहा है, बारीश के ईस बदलतें पैटर्न से सिर्फ
लोगों को ही परेशानी नहीं हो रही है , ईससे हमारी कृषी खासकर ईसखेती की उत्पादकता पर असर पड़ रहा है।
हम सब जानते है कि बारीश हमारी अर्थव्यवस्था का अहम हिस्सा है ।
देश की जीड़ीपी में कृषी क्षेत्र की करीब 17 फीसदी जबकि
ग्रामीण अर्थव्यवस्था में 35 से 40 फीसदी से ज्यादा हिस्सेदारी है ।
मौसमविभाग की माने तो पिछले 66 वर्षो मे देश मे औसत या सामान्य बारिश 95 से 103 फीसदी के बीच रही है ।
देश मे जीतनी बारिश साल भर मे होती है उसमे से 70 से 79 प्रतिशत मानसुन मे होती है ।
मध्य और उत्तर पश्चिमी भारत मे तो मानसुन मे होनेवाली बारिश साल की कुल बारिश का 89 फीसदी तक होती है लेकिन... पिछले 16--17--साल से मानसुनी बारिश का यह आँकडा़ गड़बड़ाने लगी है ।
पर्यावरणिय लिहाज से बहुत संवेदनशील हिमालयी क्षेत्र मे भी
बारिश का मिजाज बहुत तेजी से बदल रहा है , ऊत्तराखण्ड मे ईसे आम लोगों के स्तर तक महसुस किया जा रहा है।
तकनीकी रूप से देखा जाऐ तो बारिश औसत के अनुरूप ही हो रही हैं ,
लेकिन ईसका अब पहले जैसा पँटर्न नही रहा है, एक जमाने में बारिश के दिनों में पहाड़ो मे लगनेवाला स्त्झ्ड़प्त्झ्ड़् अर्थात सात से दस दिनों तक लगातार रिमझिम होने वाली बारिश ,या युपीबिहार मे लगनेवाली झड़ी
किस्सेकहानियों की बात होकर रह गई है ।
इनकी जगह कम समय मे होनेवाली मुसलाधार बारिश ने ले ली है ।
बाढ़ की बढ़ती विभीषिका ईसी का नतीजा है ।
हमारे गणित के हिसाब् से यह " भुमण्डलीय औष्णिकरण " याने Global warming के चलते पैदा हुई है ।
ईस पँटर्न को रोकने का अगर गम्भीर प्रयास् न किया गया तो यह पृथ्वी प्लँनेट समाप्त हो जाऐगा ।
और
हमारे ( हम Global warming पर 1988_1994___ से कार्य कर रहे हैं, हमारे सदसदगुरुदेव अखण्डानंदत्रिलोकचंदव्यास जी ने ही ईसलीए हमे ' सौरमण्डलेश्वर ' की उपाधि प्रदान की) हमारे मुताबिक अगर पुरे मानसुन
के सीजन मे 130--160--- घन्टो तक धीमी और संयमीत बारिश नहीं होती तो धरती का भू--जल रिचार्ज नही होता ।
ईसीलीए धीमी बारिश का होना विश्व के अस्तित्व के लिए बहुत जरुरी है ।
दरअसल जो बारिश पीछले 15-16- वर्षो से उसकी तीव्रता मे 14--15-- फीसदी की बढो़त्तरी हुई है , इसको फिर से पुरानी गति पर लाने के लिए
वैश्विक औष्णिकरण और Climate change को बढावा देनेवाली
गतीविधियां ' खास तौर पर मानवजनित कारकों ' पर अन्कुश लगाना
होगा , सबसे मुख्य बात है कि हमे प्रकृति के साथ ' एडजेस्टमेन्ट् '
करना पड़ेगा ।। प्रकृति के अनुरूप आचरण करना पड़ेगा ,तभी वर्षा का बिगडता मिजाज सन्तुलित लद एवं समयबद्ध हो सकता है।
ईसके लिऐ हमने " Swamishishuvidehanand sarswati tiwari Maharaj karanJaLad Experiment " 99999 करोड़ ,हमारा बनाया हुआ श्रीदुर्गाकरुणास्तवस्तोत्रजगतगुरूस्रोत्र के 'निन्यान्नबे हजारृनौसौ निव्यान्नबे पाठ् यह कार्यक्रम बनाया है, इसके घरघर पाठ् एवं
हमारी बनाई विधीद्वारा हवन करना चाहिए।।
सभी लोग जुड़ जाऐ ।।
और
शिवलिंगम् निर्माण में शामील हुऐ ।।