Thursday, 15 August 2013

''a''r''chan''+

एक दिन …

अक्व्य्क्ति मेरेपास आया …

मैंने उसे ' साक्षत्कार +

''वह कहने लगा ''यह ''अध्यात्म '''मुजे चाहिए था '''

मगर '''क्यों नहीं मिला ''''

मै … निरंकारी । राधास्वामी ।पन्थ से हु ''

+… मैंने कहा …

''वो । अँधेरे । ही भले थे की कदम रह पे थे …

रौशनी लायी है ''मंजिल ''से दूर तुम्हे ''

आज  सेंकडो '''हजारो ''लाखो ''' असली ''अध्यात्म ''हेतु ''भटक ''रहे है

और '''पन्थ '''उन्हें '''सिर्फ '''पथ '''पे ''ही ''अटका '''रहे / रखे '''है 

No comments:

Post a Comment