Friday, 4 November 2016

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global..wrming..and spirichual..: From this morning's festivities :D
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From this morning's festivities :D
ता 4/11/2016/_सुबह
'11'45''''
श्रिदुर्गारक्ताम्बरा शक्तिपीठ ,संस्थापक अध्यक्ष
हम स्वामि शिशुविदेहानंद सरस्वती तिवारी महाराज ' अग्निहोत्रितिवारी'
तिवारी का बाडा
कारंजालाड (दत्त) 444105 जिला वाशिम महाराष्ट्र
माँ मीराबाई ह तिवारी द्वारा आयोजित कार्यक्रम सव्वाकरोड मिट्टी के शिवलिंग निर्माण में विश्व के अनेकानेक व्यक्ति
ग्लोबल वार्मिंग और भुमण्डलिय औष्णिकरण जलवायुपरिवर्तन पर सन'1994' से शुरू है
हमने यह खेत तालाबों में प्लास्टिक की पन्नी बिछाकर
जल भंडारण की संकल्पना सन'1994/2005/ मे
ही दी थी, उस समय लोगों ने विषेश कर के
प्रशासकीय
क्षेत्रों के लोगों ने हमें
गलत करार दिया था,
देखीऐ
आज
उन्ही लोगों ने इसे लागू करने का
निश्चय करके
हमें
सही साबित कर
दिया

Friday, 28 October 2016

अथातो''स्वामिशिशुविदेहानन्द सरस्वति तिवारी महाराज जीद्न्यासा

1 of 42,611

Location ....+

https://goo.gl/maps/KVkbQJZYnbR2

श्रीदुर्गारक्ताम्बराशक्तिपीठ'संस्थापक'अध्यक्ष' स्वामिशिशु स्वामिशिशुविदेहानन्द' सरस्वति'तिवारी'महाराज....एट'पोस्ट'कारंजा'लाड'444105' डिस्ट'वाशिम''

Tuesday, 18 October 2016

global..wrming..and spirichual..: In crescita delle emissioni globali di carbonio

global..wrming..and spirichual..: In crescita delle emissioni globali di carbonio: 3:10_ 19-10-2016] स्वामि शिशुविदेहानन्द : 1994 abbiamo creato il movimento di seguirlo tutti i popoli del mondo, con molto probabile che si...

In crescita delle emissioni globali di carbonio

3:10_ 19-10-2016] स्वामि शिशुविदेहानन्द : 1994 abbiamo creato il movimento di seguirlo tutti i popoli del mondo, con molto probabile che si muoverà
 La gente di tutto il mondo di seguire molto probabilmente è una o passo-per-programma Nmah mantra Om H_2_O molto
 Abbiamo posseduto Ti Shishuvidehanand Saraswati Maharaj, hanno chiesto

 ' In crescita delle emissioni globali di carbonio '

Wednesday, 21 September 2016

pitrubhyam.........+

पितृ'पक्ष'
हमारे'अन्तस ''के'जेनेटिक'षत्रेषकोंषणा { अणरहित'आर्षिक 'ज़ो
पुर्वजो''को'' + के'' संसिहतता ' में' स्मरणीय'' क्ष्णु {क्षणों}''
पुनर्जीवित'करने'का' उत्सव...

Wednesday, 7 September 2016

Slo poyzan_+++

7__9_2016_संधयाकाल"8"31
स्वामि शिशुविदेहानन्द सरस्वती
श्रिदुर्गारक्ताम्बरा शक्तिपीठ संस्थापक अध्यक्ष स्वामि शिशुविदेहानन्द सरस्वती तिवारी महाराज ' तिवारी का बाडा ' कारंजा दत्त 444105 जिला वाशिम महाराष्ट्र

|| अनंतजन अंतरराष्ट्रिय मानवचेतना आंदोलन ||

माँ मीराबाई ह तिवारी द्वारा आयोजित कार्यक्रम सव्वाकरोड मिट्टी के शिवलिंगम् निर्माण
में शामिल विश्व के अनेकानेक
 सव्वाकरोड शिवलिंगम् के
पहले चरण
एकतालिस लाख ग्यारह हजार पांच सौ
41 लाख  11 हजार 500
उद्देश ___ ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन हो कर जो
निगेटीवीटीयां उत्पन्न हुई उनको दूर करना ओजोन की परत के गढ्ढे भरना
 जल संरक्षण कार्य
 माँ मीराबाई ह तिवारी द्वारा आयोजित कार्यक्रम सववाकरोड मिट्टी के शिवलिंग निर्माण में विश्व के
अनेकानेक व्यक्ति
||| अथातों धिमाज्ह्र जिद्न्यासा |||

मुझे लगता था कि यह हो सकता है, रहा है, लेकिन पुर्ण तया कन्फर्म नही था, लेकिन अब लगने लगा है कि यह
 'अर्विन्द ये चुपचाप कर रहा है, उसकी ल्ड्कि यहां आ कर गई इससे यह संदेह भी पुख्ता होता है कि उसने अपनी ईस प्र्ज्लि नामक ल्ड्कि से यह धिमाज्ह्र
मंगा कर यह कार्य कर रहा है, जब उसदिन पानी पीया तो उसपानी में ईस का राॅकेल जैसा स्वाद स्पष्ट महसूस किया
पिताजी के समय भी मुझे यह संदेह था कि उनको भी ईसने
यह धीमा ज्ह्र दे कर उनकी हत्या की है''
क्या''यह'किसी''साजीश''का''हिस्सा''है, नाकारा''नही''जा''सकता

Monday, 5 September 2016

global..wrming..and spirichual..: Ahato_ alien _jidnyasa....+++

global..wrming..and spirichual..: Ahato_ alien _jidnyasa....+++: SWAMISHISHU SWAMISHISHUVIDEHANAND 5 minutes ago (edited) to manyi in the earth or in our solar system is the same ,everywhere pe...

Ahato_ alien _jidnyasa....+++

to manyi in the earth or in our solar system is the same ,everywhere people live is all water on the moon ,the wind and the almost of life on planets foreiners do no KNOW anyhing at all pLanetary life ,and far ahead of us with very ' advanced technolog

Tuesday, 30 August 2016

भवप्रत्ययो, विदेह. ......

 आदि वैदिक संस्कृत
= द्णिण्ङृत्ङौ अवभृतानह:
संप्र्द्द्न्यो वृवौथिगृहिताय षैषिण्ञघूड्ढृहौजितासौ,
संख्या + ^494^= में अव्व्वृथातौ 

Sunday, 28 August 2016

संस्कृत सीखिए पाठ नंबर (7 )

28_8_2016_रात्रि 7'31
स्वामि शिशुविदेहानन्द सरस्वती
श्रिदुर्गारक्ताम्बरा शक्तिपीठ संस्थापक अध्यक्ष स्वामि शिशुविदेहानन्द सरस्वती तिवारी महाराज ' तिवारी का बाडा ' कारंजा दत्त 444105 जिला वाशिम महाराष्ट्र

|| अनंतजन अंतरराष्ट्रिय मानवचेतना आंदोलन ||

माँ मीराबाई ह तिवारी द्वारा आयोजित कार्यक्रम सव्वाकरोड मिट्टी के शिवलिंगम् निर्माण
में शामिल विश्व के अनेकानेक

 सव्वाकरोड शिवलिंगम् के
पहले चरण

एकतालिस लाख ग्यारह हजार पांच सौ
41 लाख  11 हजार 500
उद्देश ___ ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन हो कर जो
निगेटीवीटीयां उत्पन्न हुई उनको दूर करना ओजोन की परत के गढ्ढे भरना
 जल संरक्षण कार्य
 माँ मीराबाई ह तिवारी द्वारा आयोजित कार्यक्रम सववाकरोड मिट्टी के शिवलिंग निर्माण में विश्व के अनेकानेक व्यक्ति
||| अथातों संस्कृत जिद्न्यासा |||


_____________________________________________

पाठ नंबर ( 7 ) ता 28_8_2016_'7"45
होने के रूप में उपयोग होने वाली ' भू ' धातु के
वर्तमान काल के लट् लकार के तीनों पुरूषों एवं
सभी वचनों के रूप बताता हूँ
प्रथम पुरूष एकवचन
स: भवति = वह होता है |  मध्यम पुरूष एकवचन
प्रथम पुरूष द्विवचन       |  त्वं भवसि = तुम होते हो
तौ भवत: = वे दोनों होते हैं |  मध्यम पुरूष द्विवचन
प्रथम पुरूष बहुवचन   |     युवां भवत: = तुम दोनों होते हो
ते भवन्ति  = वे सब होते हैं |  मध्यम पुरूष बहुवचन
                                      | युयं भवत:=तुम सब होते हो
    उत्तम पुरूष एकवचन
    अहं भवामि = मै होता हूँ |
      उत्तम पुरूष द्विवचन
        अहं भवाव: = हम दोनों होते हैं |
      उत्तम पुरूष बहुवचन
       वयं भवाम: = हम सब होते हैं |

          ||  पद ज्ञान ||
संस्कृत में सार्थकशब्द को प्रतिपदिक कहते हैं , उदाहरण -: राम
ऐसै ही व्यापारविहिन ' क्रिया ' धातु कही जाती है
प्रतिपदिक के साथ विभक्ति जुडने पर वह '  पद ' कहलाएगा
ऐसे ही धातु के साथ व्यापार बोधक प्त्यय जुडने पर
वह भी पद ही कहलाएगा
शब्दो का जब व्याकरणिक संस्कार हो जाता है, तो वह पद कहलाता है,
पद दो प्रकार का होता है,  सुब्न्त और तिङन्त
' सुप्तिङन्त पदम् '
क्रिया पद के मुल रूप को धातु कहते हैं.
उदाहरण :- गम् = जाना
पठ्  =  पढना
कृ    = करना
अस् = होना

Saturday, 27 August 2016

global..wrming..and spirichual..: संस्कृत पाठ नं'6'

global..wrming..and spirichual..: संस्कृत पाठ नं'6': 22_8_2016_रात्रि 8'31 स्वामि शिशुविदेहानन्द सरस्वती श्रिदुर्गारक्ताम्बरा शक्तिपीठ संस्थापक अध्यक्ष स्वामि शिशुविदेहानन्द सरस्वती तिवा...

संस्कृत पाठ नं'6'

22_8_2016_रात्रि 8'31
स्वामि शिशुविदेहानन्द सरस्वती
श्रिदुर्गारक्ताम्बरा शक्तिपीठ संस्थापक अध्यक्ष स्वामि शिशुविदेहानन्द सरस्वती तिवारी महाराज ' तिवारी का बाडा ' कारंजा दत्त 444105 जिला वाशिम महाराष्ट्र

|| अनंतजन अंतरराष्ट्रिय मानवचेतना आंदोलन ||

माँ मीराबाई ह तिवारी द्वारा आयोजित कार्यक्रम सव्वाकरोड मिट्टी के शिवलिंगम् निर्माण
में शामिल विश्व के अनेकानेक

 सव्वाकरोड शिवलिंगम् के
पहले चरण

एकतालिस लाख ग्यारह हजार पांच सौ
41 लाख  11 हजार 500
उद्देश ___ ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन हो कर जो
निगेटीवीटीयां उत्पन्न हुई उनको दूर करना ओजोन की परत के गढ्ढे भरना
 जल संरक्षण कार्य
 माँ मीराबाई ह तिवारी द्वारा आयोजित कार्यक्रम सववाकरोड मिट्टी के शिवलिंग निर्माण में विश्व के अनेकानेक व्यक्ति
||| अथातों संस्कृत जिद्न्यासा |||

पाठ  (4) ता 22_8_2016 रात्रि'8'31"


व्यंजन तिन विभाग मे बांटे गए हैं,
स्पर्श,  अंत:स्थ , उष्म |
क से म तक स्पर्श
य व र ल  अंत:स्थ
श ष स ह  ऊष्म
है
स्पर्श व्यंजन पाँच भागों में विभाजित है
कवर्ग      -  क ख ग घ ङ
चवर्ग      -    च छ ज झ ञ
टवर्ग       -    ट ठ ड ढ ण
तवर्ग        -    त थ द ध न
पवर्ग         - प फ ब भ म
करण  =जिव्हा सहीत निचला ओष्ठ " द्वारा उच्चारण स्थान कण्ठ तालु मुर्धा दंत को छूकर जिनका उच्चारण हो वे स्पर्श वर्ण कहलाते हैं, लेकिन ङ ञ ण न म के उच्चारण में केवल स्थान और करण का ही स्पर्श नहीं होता बल्कि सांस का कूछ भाग नाक से भी निकलता है
ईसीलीए ' ङ ञ ण न म को अनुनासिक कहते हैं
अंत:स्थ = य व र ल ' ईस नाम से स्पष्ट है कि ये वर्ण स्वर और व्यंजन के बीच के हैं | ईनके उच्चारण में करण का उच्चारणस्थान से थोडा स्पर्श होता है, अत: ईनहे
ईष्त्स्पृट भी कहते हैं.
व्यंजन होते हुए भी य व र ल , कभी-कभी क्रमशः इ उ ऋ लृ ऊ मे बदल जाते हैं,
उच्चारण  -: स्थान के विचार से ' य ' तालव्य ,
                                            ' र  ' मूर्धन्य ,
                                     और ' ल  ' दन्त्य तथा व दन्त्योष्ठ्य है |   '  व ' का उच्चारण उपर के दंत पर नीचे वाले ओष्ठ से होता है  |
उष्मवर्ण  -: श ष स ह  ये ध्वनियाँ सीटी की तरह निकलती है
'  श  '  तालव्य है
'  ष   ' मूर्धन्य है
'  स  ' दन्त्य है  और  ' ह ' कण्ठ्य है |
श का उच्चारण   तालु से होने के कारण सीटी की तरह ध्वनि निकलती है,
विसर्ग का उच्चारण कण्ठ्य हकार की तरह होता है, और अनुस्वार का उच्चारण केवल नाक से ही होता है |
संस्कृत भाषा में प्रयुक्त होने वाले कुछ संयुक्त व्यंजन आज हिन्दी आदि कतिपय भाषाओं में स्वतंत्र व्यंजन के रूप में प्रयुक्त होने लगे हैं, उदाहरण -: क्ष त्र ज्ञ | ' क्ष ' यह क और ष के योग से बना है , त्र यह त् र् क् के योग से बना है
आदि वैदिक भाषा में तो '  क्ष्  ', ' ज्ञ्  ' यह शब्द ऊर्ज्क्ञ
संपातिय त्रैक्षणाओं सदृश चुने एवं बुने गये हैं
______________________________________________

पाठ (5)  ता. 23_8_2016_रात्रि_8'50
कोई भी वाक्य बनाने में  ' क्रिया ' की ही महत्वपूर्ण भूमिका
होती हैं,  और वाक्य के क्रिया के कर्ता का भी उतना ही महत्व होता है,
कर्ता , प्रथम पुरूष , मध्यम पुरूष , उत्तम पुरूषों
एवं
एक_ द्वि _तथा_ बहुवचनों  के भेद से
अनेक प्रकार का होता है,
उदाहरण -:  स: गच्छति
                   तौ गच्छत:
                   ते गच्छन्ति
                   त्वं गच्छसि
   अहं गच्छामि
   आवां गच्छाव:
   वयं गच्छाम:
अहं (हम)
आवाम् ( हम दोनों )
वयम् ( हम सब )
कर्तृपदों के साथ ' उत्तम पुरूषों की क्रिया  ' गच्छामि ,
गच्छाव: , गच्छाम: ,
एवं
त्वं  ,  युवाम् ,  यूयम् ,कर्तृपदों के साथ
मध्यम पुरूषों की
क्रिया गच्छसि , गच्छत: ,गच्छथ का प्रयोग किया गया है
संस्कृत भाषा में क्रियापदों के ईन रूपों के साथ कर्ता एवं
क्रियापद के बीच एक निश्चित सम्बन्ध होता है, यदि कर्ता
अहम्
अवाम्
वयम् , हो तो क्रिया पद वचनों के अनुसार ' उत्तम पुरूष ' का ही लागू होगा
ऐसै ही कर्तृपद
त्वम् _ युवाम् _ यूयम् ___ हो तो क्रिया पद वचनों के अनुसार ' मध्यम पुरूष ' का ही लागू होगा
और अलग प्रकार के कर्तृपदों के साथ क्रिया पद वचनों के अनुसार ' प्रथम पुरूष ' में ही लागू होगा
उदाहरण -: स: | सा | बाल: गच्छति
तौ | तै | बालौ गच्छत:
ते | ता: | बाला: गच्छन्ति
_____________________________________________
पाठ नंबर (6) आज दिनांक '27_8_2016_

उपस्थित होने के अर्थ में उपयोग होने वाली  ' अस् ' धातु का वर्तमान काल के
' लट् लकार ' के प्रथम पुरुष एकवचन में ' अस्ति ' रूप बनता है, जिसका अर्थ है ' है '
ईसके साथ कर्ता के रूप में तद् सर्वनाम के प्रथमाएकवचन
' पुल्लिंग रूप ' स: ' का प्रयोग होगा एवं वाक्य बनेगा ' स: अस्ति: '=  वह है
ईसीप्रकार 'तद् ' शब्द के ही पुल्लिंग में प्रथमा के
द्विवचन एवं बहुवचन के रूप ' तौ , ते ' का प्रयोग होगा और वाक्य ' तौ , स्त: ' =वह दोनो है, और ' ते सन्ति '
= वे है , ' अस् ' धातु लट् लकार के सभी पुरूषों एवं वचनों का प्रयोग बताता हूँ , इन में क्रमशः तद् , युष्मद् , अस्मद्
शब्दों का प्रयोग किया गया है

प्रथम पुरूष :-  स: अस्ति = वह है = एकवचन
तौ स्त: = वे दोनो है  = द्विवचन
ते सन्ति = वे सब है  = बहुवचन

मध्यम पुरूष  :-  त्वम् असि    = तुम हो         = एकवचन
          युवां स्थ:             =     तुम दोनो हो    = द्विवचन
युयं स्थ:   = तुम सब हो                              = बहुवचन

उत्तम पुरूष  :- अहम् अस्मि = मै हूँ = एकवचन
    आवां स्म : =            हम दोनों है = द्विवचन
        वयं स्म: =    हम सब है         = बहुवचन

करना , करने के अर्थ में प्रयोग होने वाली कृ धातु के वर्तमान काल के
वाचक लट् लकार के तीनो पुरूष एवं सभी वचनों के रूप
बताता हूँ, इनके साथ क्रमशः
तद् , युष्मद् , अस्मद् शब्दों का प्रयोग कीस प्रकार होगा यह बता रहा हूँ
प्रथम पुरूष एकवचन = स: करोति = वह करता है
प्रथम पुरूष द्विवचन  = तौ कुरूत:  = वे दोनों करते हैं
प्रथम पुरूष बहुवचन  = ते कुर्वन्ति = वे सब करते हैं

मध्यम पुरूष एकवचन = त्वं करोषि = तुम करते हो
मध्यम पुरूष द्विवचन = युवां कुरूथ: = तुम दोनों करते हो
मध्यम पुरूष बहुवचन = युयं कुरूथ: = तुम सब करते हो

उत्तम पुरूष एकवचन = अहं करोमि = मै करता हूँ
उत्तम पुरूष द्विवचन  = आवां कुर्व: = हम दोनों करते हैं
उत्तम पुरूष बहुवचन = वयं कुर्व:  = हम सब करते हैं

Tuesday, 23 August 2016

पाठ 5 संस्कृत

22_8_2016_रात्रि 8'31
स्वामि शिशुविदेहानन्द सरस्वती
श्रिदुर्गारक्ताम्बरा शक्तिपीठ संस्थापक अध्यक्ष स्वामि शिशुविदेहानन्द सरस्वती तिवारी महाराज ' तिवारी का बाडा ' कारंजा दत्त 444105 जिला वाशिम महाराष्ट्र

|| अनंतजन अंतरराष्ट्रिय मानवचेतना आंदोलन ||

माँ मीराबाई ह तिवारी द्वारा आयोजित कार्यक्रम सव्वाकरोड मिट्टी के शिवलिंगम् निर्माण
में शामिल विश्व के अनेकानेक

 सव्वाकरोड शिवलिंगम् के
पहले चरण

एकतालिस लाख ग्यारह हजार पांच सौ
41 लाख  11 हजार 500
उद्देश ___ ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन हो कर जो
निगेटीवीटीयां उत्पन्न हुई उनको दूर करना ओजोन की परत के गढ्ढे भरना
 जल संरक्षण कार्य
 माँ मीराबाई ह तिवारी द्वारा आयोजित कार्यक्रम सववाकरोड मिट्टी के शिवलिंग निर्माण में विश्व के अनेकानेक व्यक्ति
||| अथातों संस्कृत जिद्न्यासा |||

पाठ  (4) ता 22_8_2016 रात्रि'8'31"


व्यंजन तिन विभाग मे बांटे गए हैं,
स्पर्श,  अंत:स्थ , उष्म |
क से म तक स्पर्श
य व र ल  अंत:स्थ
श ष स ह  ऊष्म
है
स्पर्श व्यंजन पाँच भागों में विभाजित है
कवर्ग      -  क ख ग घ ङ
चवर्ग      -    च छ ज झ ञ
टवर्ग       -    ट ठ ड ढ ण
तवर्ग        -    त थ द ध न
पवर्ग         - प फ ब भ म
करण  =जिव्हा सहीत निचला ओष्ठ " द्वारा उच्चारण स्थान कण्ठ तालु मुर्धा दंत को छूकर जिनका उच्चारण हो वे स्पर्श वर्ण कहलाते हैं, लेकिन ङ ञ ण न म के उच्चारण में केवल स्थान और करण का ही स्पर्श नहीं होता बल्कि सांस का कूछ भाग नाक से भी निकलता है
ईसीलीए ' ङ ञ ण न म को अनुनासिक कहते हैं
अंत:स्थ = य व र ल ' ईस नाम से स्पष्ट है कि ये वर्ण स्वर और व्यंजन के बीच के हैं | ईनके उच्चारण में करण का उच्चारणस्थान से थोडा स्पर्श होता है, अत: ईनहे
ईष्त्स्पृट भी कहते हैं.
व्यंजन होते हुए भी य व र ल , कभी-कभी क्रमशः इ उ ऋ लृ ऊ मे बदल जाते हैं,
उच्चारण  -: स्थान के विचार से ' य ' तालव्य ,
                                            ' र  ' मूर्धन्य ,
                                     और ' ल  ' दन्त्य तथा व दन्त्योष्ठ्य है |   '  व ' का उच्चारण उपर के दंत पर नीचे वाले ओष्ठ से होता है  |
उष्मवर्ण  -: श ष स ह  ये ध्वनियाँ सीटी की तरह निकलती है
'  श  '  तालव्य है
'  ष   ' मूर्धन्य है
'  स  ' दन्त्य है  और  ' ह ' कण्ठ्य है |
श का उच्चारण   तालु से होने के कारण सीटी की तरह ध्वनि निकलती है,
विसर्ग का उच्चारण कण्ठ्य हकार की तरह होता है, और अनुस्वार का उच्चारण केवल नाक से ही होता है |
संस्कृत भाषा में प्रयुक्त होने वाले कुछ संयुक्त व्यंजन आज हिन्दी आदि कतिपय भाषाओं में स्वतंत्र व्यंजन के रूप में प्रयुक्त होने लगे हैं, उदाहरण -: क्ष त्र ज्ञ | ' क्ष ' यह क और ष के योग से बना है , त्र यह त् र् क् के योग से बना है
आदि वैदिक भाषा में तो '  क्ष्  ', ' ज्ञ्  ' यह शब्द ऊर्ज्क्ञ
संपातिय त्रैक्षणाओं सदृश चुने एवं बुने गये हैं
______________________________________________

पाठ (5)  ता. 23_8_2016_रात्रि_8'50
कोई भी वाक्य बनाने में  ' क्रिया ' की ही महत्वपूर्ण भूमिका
होती हैं,  और वाक्य के क्रिया के कर्ता का भी उतना ही महत्व होता है,
कर्ता , प्रथम पुरूष , मध्यम पुरूष , उत्तम पुरूषों
एवं
एक_ द्वि _तथा_ बहुवचनों  के भेद से
अनेक प्रकार का होता है,
उदाहरण -:  स: गच्छति
                   तौ गच्छत:
                   ते गच्छन्ति
                   त्वं गच्छसि
   अहं गच्छामि
   आवां गच्छाव:
   वयं गच्छाम:
अहं (हम)
आवाम् ( हम दोनों )
वयम् ( हम सब )
कर्तृपदों के साथ ' उत्तम पुरूषों की क्रिया  ' गच्छामि ,
गच्छाव: , गच्छाम: ,
एवं
त्वं  ,  युवाम् ,  यूयम् ,कर्तृपदों के साथ
मध्यम पुरूषों की
क्रिया गच्छसि , गच्छत: ,गच्छथ का प्रयोग किया गया है
संस्कृत भाषा में क्रियापदों के ईन रूपों के साथ कर्ता एवं
क्रियापद के बीच एक निश्चित सम्बन्ध होता है, यदि कर्ता
अहम्
अवाम्
वयम् , हो तो क्रिया पद वचनों के अनुसार ' उत्तम पुरूष ' का ही लागू होगा
ऐसै ही कर्तृपद
त्वम् _ युवाम् _ यूयम् ___ हो तो क्रिया पद वचनों के अनुसार ' मध्यम पुरूष ' का ही लागू होगा
और अलग प्रकार के कर्तृपदों के साथ क्रिया पद वचनों के अनुसार ' प्रथम पुरूष ' में ही लागू होगा
उदाहरण -: स: | सा | बाल: गच्छति
तौ | तै | बालौ गच्छत:
ते | ता: | बाला: गच्छन्ति

Monday, 22 August 2016

global..wrming..and spirichual..: आओ संस्कृत सीखो पाठ क्रमांक (4)

global..wrming..and spirichual..: आओ संस्कृत सीखो पाठ क्रमांक (4): 22_8_2016_रात्रि 8'31 स्वामि शिशुविदेहानन्द सरस्वती श्रिदुर्गारक्ताम्बरा शक्तिपीठ संस्थापक अध्यक्ष स्वामि शिशुविदेहानन्द सरस्वती तिवा...

आओ संस्कृत सीखो पाठ क्रमांक (4)

22_8_2016_रात्रि 8'31
स्वामि शिशुविदेहानन्द सरस्वती
श्रिदुर्गारक्ताम्बरा शक्तिपीठ संस्थापक अध्यक्ष स्वामि शिशुविदेहानन्द सरस्वती तिवारी महाराज ' तिवारी का बाडा ' कारंजा दत्त 444105 जिला वाशिम महाराष्ट्र

|| अनंतजन अंतरराष्ट्रिय मानवचेतना आंदोलन ||

माँ मीराबाई ह तिवारी द्वारा आयोजित कार्यक्रम सव्वाकरोड मिट्टी के शिवलिंगम् निर्माण
में शामिल विश्व के अनेकानेक

 सव्वाकरोड शिवलिंगम् के
पहले चरण

एकतालिस लाख ग्यारह हजार पांच सौ
41 लाख  11 हजार 500
उद्देश ___ ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन हो कर जो
निगेटीवीटीयां उत्पन्न हुई उनको दूर करना ओजोन की परत के गढ्ढे भरना
 जल संरक्षण कार्य
 माँ मीराबाई ह तिवारी द्वारा आयोजित कार्यक्रम सववाकरोड मिट्टी के शिवलिंग निर्माण में विश्व के अनेकानेक व्यक्ति
||| अथातों संस्कृत जिद्न्यासा |||

पाठ  (4) ता 22_8_2016 रात्रि'8'31"


व्यंजन तिन विभाग मे बांटे गए हैं,
स्पर्श,  अंत:स्थ , उष्म |
क से म तक स्पर्श
य व र ल  अंत:स्थ
श ष स ह  ऊष्म
है
स्पर्श व्यंजन पाँच भागों में विभाजित है
कवर्ग      -  क ख ग घ ङ
चवर्ग      -    च छ ज झ ञ
टवर्ग       -    ट ठ ड ढ ण
तवर्ग        -    त थ द ध न
पवर्ग         - प फ ब भ म
करण  =जिव्हा सहीत निचला ओष्ठ " द्वारा उच्चारण स्थान कण्ठ तालु मुर्धा दंत को छूकर जिनका उच्चारण हो वे स्पर्श वर्ण कहलाते हैं, लेकिन ङ ञ ण न म के उच्चारण में केवल स्थान और करण का ही स्पर्श नहीं होता बल्कि सांस का कूछ भाग नाक से भी निकलता है
ईसीलीए ' ङ ञ ण न म को अनुनासिक कहते हैं
अंत:स्थ = य व र ल ' ईस नाम से स्पष्ट है कि ये वर्ण स्वर और व्यंजन के बीच के हैं | ईनके उच्चारण में करण का उच्चारणस्थान से थोडा स्पर्श होता है, अत: ईनहे
ईष्त्स्पृट भी कहते हैं.
व्यंजन होते हुए भी य व र ल , कभी-कभी क्रमशः इ उ ऋ लृ ऊ मे बदल जाते हैं,
उच्चारण  -: स्थान के विचार से ' य ' तालव्य ,
                                            ' र  ' मूर्धन्य ,
                                     और ' ल  ' दन्त्य तथा व दन्त्योष्ठ्य है |   '  व ' का उच्चारण उपर के दंत पर नीचे वाले ओष्ठ से होता है  |
उष्मवर्ण  -: श ष स ह  ये ध्वनियाँ सीटी की तरह निकलती है
'  श  '  तालव्य है
'  ष   ' मूर्धन्य है
'  स  ' दन्त्य है  और  ' ह ' कण्ठ्य है |
श का उच्चारण   तालु से होने के कारण सीटी की तरह ध्वनि निकलती है,
विसर्ग का उच्चारण कण्ठ्य हकार की तरह होता है, और अनुस्वार का उच्चारण केवल नाक से ही होता है |
संस्कृत भाषा में प्रयुक्त होने वाले कुछ संयुक्त व्यंजन आज हिन्दी आदि कतिपय भाषाओं में स्वतंत्र व्यंजन के रूप में प्रयुक्त होने लगे हैं, उदाहरण -: क्ष त्र ज्ञ | ' क्ष ' यह क और ष के योग से बना है , त्र यह त् र् क् के योग से बना है
आदि वैदिक भाषा में तो '  क्ष्  ', ' ज्ञ्  ' यह शब्द ऊर्ज्क्ञ
संपातिय त्रैक्षणाओं सदृश चुने एवं बुने गये हैं

global..wrming..and spirichual..: संस्कृत भाग पाठ 3

global..wrming..and spirichual..: संस्कृत भाग पाठ 3: 22_8_2016_सुबह 11"10 स्वामि शिशुविदेहानन्द सरस्वती श्रिदुर्गारक्ताम्बरा शक्तिपीठ संस्थापक अध्यक्ष स्वामि शिशुविदेहानन्द सरस्वती तिवा...

संस्कृत भाग पाठ 3

22_8_2016_सुबह 11"10
स्वामि शिशुविदेहानन्द सरस्वती
श्रिदुर्गारक्ताम्बरा शक्तिपीठ संस्थापक अध्यक्ष स्वामि शिशुविदेहानन्द सरस्वती तिवारी महाराज ' तिवारी का बाडा ' कारंजा दत्त 444105 जिला वाशिम महाराष्ट्र

|| अनंतजन अंतरराष्ट्रिय मानवचेतना आंदोलन ||

माँ मीराबाई ह तिवारी द्वारा आयोजित कार्यक्रम सव्वाकरोड मिट्टी के शिवलिंगम् निर्माण
में शामिल विश्व के अनेकानेक

 सव्वाकरोड शिवलिंगम् के
पहले चरण

एकतालिस लाख  ग्यारह हजार पांच सौ
41 लाख  11 हजार 500
उद्देश ___ ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन हो कर जो
निगेटीवीटीयां उत्पन्न हुई उनको दूर करना ओजोन की परत के गढ्ढे भरना
 जल संरक्षण कार्य
 माँ मीराबाई ह तिवारी द्वारा आयोजित कार्यक्रम सववाकरोड मिट्टी के शिवलिंग निर्माण में विश्व
के   अनेकानेक व्यक्ति
शिवलिंगम् निर्माण
||| अथातों संस्कृति जिद्न्यासा

संस्कृत में चिकित्सा पद्धति धर्म दर्शन व्याकरण गणित रसायन खगोल विज्ञान ज्योतिष शास्त्र तंत्र योग कुल मिलाकर'84' प्रकार के विषय पर साहित्य उपलब्ध उपलब्ध'18' वी शताब्दी में रेक्स चाॅज्झनीन एवं गोम्स के भाषनियम प्रकाशित होने के बाद
संस्कृत भाषा विश्व भाषा के रूप में प्रगट हूई
सम् उपसर्ग स् आगम और
कृ
धातु
 सम् + स् + कृ + त
के मिलने से
संस्कृत शब्द बना है, जिसका तात्पर्य यह है कि
विकल्प बहुल वेद भाषा का स्थिरीकृत रूप = अर्थ यह हुआ कि वह भाषा जिसका विश्लेषण विवरण एवं संस्कार व्याकरण शास्त्र वेत्ताओं द्वारा किया गया है
ऋङदण्डि ने भी संस्कृत को " संस्कृतं नाम दैवी वाक् अन्वाख्याता महर्षिभि: |'
संस्कृत वर्णमाला
1) स्वर
2) व्यंजन
3) अयोगवाह
स्वर वर्ण --वह वर्ण जो बगैर किसी अन्य वर्ण की मदद से उच्चारित किये जा सकते हैं,  उन्हे स्वर वर्ण कहते हैं
अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ लृ ए ऐ ओ एवं औ
2) व्यंजन वर्ण -- वह वर्ण जो ' स्वर वर्ण ' की सहायता से उच्चारित होते हैं, उन्हें व्यंजन वर्ण कहते हैं
क ख ग घ ङ   | च छ ज झ ञ |
ट ठ ड ढ ण     | त थ द ध न |
प फ ब भ म      | य र ल व |
श ष स ह
3) अयोगवाह वर्ण -- वह वर्ण जो संस्कृत भाषा में उपयोग तो होते हैं, किन्तु उनका स्वर एवं व्यंजन वर्णों के अंतर्गत गणना नही कर सकते उन्हें अयोगवाह कहते हैं.
अनुस्वार -- किसी वर्ण के उच्चारण के बाद की गूंज यह अनुस्वार है
ईसको
'__'__' ईस संकेत से दिखाया गया है
उदाहरण -- अं इं उं
अं ' रामं '
इं  ' हरिं  '
उं  ' भानुं '
विसर्ग -- जब वर्ण का उच्चारण स्वभावत: रूक जाता है, तब एक विशेष प्रकार की ध्वनि सुनाई देती है
ईस ध्वनि को विसर्ग कहते हैं.
ईसे वर्ण के अंत में ':' ईस चिन्ह से दिखाया जाता है
उदाहरण :- राम:  हरि:
_____________________________________
पाठ ' 2 ' आज तारिख 21_8_2016

वर्ण वर्गीकरण
उच्चारण में जो
समय लगता है, उसका विचार किया गया तो प्रत्येक स्वर का
र्हस्व  ' एक मात्र उच्चारण काल
दिर्घ   ' द्वि मात्रिक उच्चारण काल
एवं    '  बहु'मात्रिक उच्चारण काल
प्लुप्त ऐसे तीन भेद है
मुल रूप से पांच ही स्वर है
अ, इ, उ, ऋ, लृ
ईनमे प्रथम चार के दीर्घ रूपों आ , ई , ऊ , ऋ , मिलकर
नौ स्वर है
लृ का दीर्घ नहीं होता,  अ और इ , या ई का संयुक्त रूप ए , अ , या आ और ई का संयुक्त रूप ऐ
अ आ उ,  ऊ का संयुक्त रूप ओ तथा अ या आ और ओ का संयुक्त रूप औ होता है,
ईस प्रकार संयुक्त स्वरों से मिलकर ' स्वरों ' की संख्या तेरह
हो जाती है.
संस्कृत व्याकरण मे उच्चारण की दृष्टि से स्वरों की विशेषताएं 1) उच्चारण काल , 2) बलाघात , 3) अनु नासिकता = नासिका के मदद से उच्चारण करना
स्वरों के र्हस्व , दीर्घ , प्लुत :- उच्चारण काल पर आधारित है
पलक उठने और गिरने के समय को एकमात्रा काल जाता है
ईस दृष्टि से एक मात्र वाला = एक मात्रिक उच्चारण को '   र्हस्व ' कहते हैं
उदाहरण अ द्विमात्रिक को दिर्घ :- अ ऽ का उच्चारण
तथा बहुमात्रिक या एक ही स्वर को देर तक उच्चारित
होने पर प्लुत कहते हैं
उदाहरण :- अ ऽऽ , आ ऽऽऽ
कण्ठ आदि उच्चारण स्थानों के ऊपरी एवं निचले से जोर देकर किए जाने वाले उच्चारण के , स्वर वर्णों का
उदात्त
अनुदात्त
एवं स्वरित , ऐसे तिन भेद होते हैं
उच्चारण स्थान के साथ जीभ को दृढतापुर्वक लगाकर उच्चरित होने वाले स्वर ' बलाघात ' के साथ उच्चारित होते हैं ,अत: ईन्हे उदात्त कहते हैं
कम बलाघात के साथ उच्चरित होने वाले स्वर ' अनुदात्त '
कहलाते हैं
जीन स्वर वर्णों के उच्चारण ' संतुलित बलाघात ' पूर्वक होते हैं, वे ' स्वरित ' कहलाते हैं
ईन सभी प्रकार के स्वरों का उच्चारण दो प्रकार से किया जा सकता है, जो नासिका के मदद से उच्चरित हो वे, उन्हे अनुनासिक कहते हैं,
और जो बीना नासिका के मदद से उच्चरित होते हैं, उन्हे अननुनासिक कहते हैं
______________________________________________
22_8_2016_
पाठ  ( 3) रा
व्यंजन वर्णों का वर्गीकरण
संस्कृत में व्यंजन वर्णों को तीन प्रकार से विभक्त कीया है,
स्पर्श,  अंत:स्थ , उष्म
स्पर्श :- जीन व्यंजन वर्णों के उच्चारण में जिव्हा के विभिन्न भागों का उच्चारण स्थान के साथ स्पर्श हो या
निचे ओष्ठ का उपरी ओष्ठ से स्पर्ष हो उन्हें ' स्पर्श व्यंजन ' कहते हैं,  क   से   म   पर्यंत पच्चीस व्यंजन स्पर्श कहे जाते हैं
कण्ठ , तालु , मुर्धा , दन्त , एवं उपरी ओष्ठ उच्चारण स्थान है
ईन उच्चारण स्थानो से वर्णों के उच्चारण में जिव्हा अथवा निचला ओष्ठ सहायक का कार्य करते हैं
अंत: स्थ :- स्वर एवं व्यंजन वर्णों के मध्यवर्ती व्यंजन वर्णों को  ' अंत: स्थ ' कहा जाता है यही कारण है कि आधुनिक विज्ञानी ईनहे  ' अर्धस्वर ' भी कहते हैं,
य  र  ल  व  अंत: स्थ वर्ण है.
उष्म:- जिन व्यंजन वर्ण के उच्चारण में अंदर से आने वाली वायु अपेक्षाकृत अधिक उष्मा के साथ निर्गत होती है, उन्हे उष्म वर्ण कहते हैं     श  ष   स   ह   उष्म वर्ण है

संस्कृत के प्रत्येक वर्ण के उच्चारण स्थान निश्चित है |
यह स्थान वक्ता के मुख के भीतर ही होते हैं |
उदाहरण :- कण्ठ  तालु  मुर्धा  दन्त ओष्ठ  | कुछ वर्णों के उच्चारण दो स्थानों " मुख में स्थित उच्चारण स्थान तथा नासिका " से होता है
यह निम्नलिखित हैं
उच्चारण स्थान              वर्ण      
कण्ठ                  अ वर्ण क ख ग घ ङ ह और विसर्ग
तालु                     इ वर्ण  च छ ज झ ञ य श
मुर्धा                      ऋ वर्ण  ट ठ ड ढ ण र ष
दन्त                       लृ वर्ण   त थ द ध न ल स
ओष्ठ                       उ वर्ण   प फ ब भ म  
नासिका                   ङ ञ ण न म
कण्ठतालु                  ए ऐ
कण्ठोष्ठ                      ओ औ
दन्तोष्ठ                         व

वर्णों के प्रयत्न
वर्णों के उच्चारण में कुछ चेष्टा करनी पडती है , उसे प्रयत्न कहते हैं,
यह दो प्रकार के
1) आभ्यन्तर
2) बाह्य
होते हैं
आभ्यन्तर प्रयत्न
वर्ण के मुख के बाहर आने के पहले मुख के भीतर जो यत्न कीया जाता है, उसे ही आभ्यन्तर प्रयत्न कहते हैं
यह मुख के भीतर ही होता है, और ईसके बीना बाह्ययत्न
निष्फल है,   यह प्रयत्न  पाँच प्रकार के होते हैं
 स्पृष्ट
ईषस्पृष्ट
ईषद्विवृत
विवृत
संवृत
उनमे स्पृष्ट प्रयत्न स्पर्श वर्णों का होता है
ईषस्पृष्ट अंत: स्थों का
ईषदविवृत उष्म वर्णों का
और
विवृत यह स्वरों का है, हस्व अ का प्रयोग दशा में ' संवृत '
प्रयत्न होता है , और प्रक्रिया दशा में विवृत होता है. .
स्पृष्ट            | ईषत्स्पृष्ट    | विवृत       |ईषदविवृत| संवृत
क च ट त प    | य             | आ            |श            | अ
ख छ ठ थ फ   |र                | इ ई         |ष    
ग ज ड द ब      |ल              | उ ऊ ए ऐ  |स
घ झ ढ ध भ     | व               |ओ औ     |ह
ङ ञ ण न म       | लृ             |ऋ  लृ    
स्पृष्ट प्रयत्न का अर्थ है उच्चारण करते समय जिव्हा का तालु आदि उच्चारण स्थानों को छुना ईषद्स्पृष्ट का अर्थ है थोडे से ही स्पर्श से विवृत का अर्थ है वर्णों के उच्चारण के समय मुख का पुरा खुला रहना ईषद्विवृत में मुख थोडा खुला रहता है, संवृत का अर्थ है कण्ठ की विशेष अवस्था
बाह्यप्रयत्न :- मुखगूहा से  पुर्व होनेवाले यत्न को बाह्यप्रयत्न कहते हैं
विवार  संवार  श्वास  नाद  घोष अघोष  अल्पप्राण  महाप्राण  उदात्त अनुदात्त और स्वरित
प्रत्येक व्यंजन वर्ण के चार बाह्य प्रयत्न होते हैं, वर्ग के प्रथम द्वितीय एवं श  ष  स वर्णों के विवार , श्वास एवं अधोष  बाह्यप्रयत्न है वर्ग के द्वितीय चतुर्थ एवं य व र ल ह
वर्णों के संवार , नाद,  एवं घोष प्रयत्न होते हैं
ईसके अतिरिक्त प्रत्येक व्यंजन का अल्पप्राण एवं महाप्राण
प्रयत्न भी होता है, वर्ग का प्रथम तृतीय पंचम एवं य व र ल वर्णों का अल्पप्राण प्रयत्न होता है, वर्ग के द्वितीय चतुर्थ एवं श ष स ह वर्णों के महाप्राण प्रयत्न होते हैं,
स्वर वर्णों के    उदात्त    अनुदात्त    स्वरित   प्रयत्न होते हैं.
विवार     |संवार  नाद घोष |अल्पप्राण| महाप्राण|उदात्त
 श्वास   |   नाद                                             |अनुदात्त
अघोष    | घोष                |              |             |स्वरित
क ख      | ग घ ङ            | क ग ङ   |ख घ     |    अ ए    
च छ       | ज झ ञ          | च ज ञ   | छ ज    |     इ ओ    
ट ठ        | ड ढ ण           |  ट ड ण   |  ठ ढ   |      उ ऐ
त थ        | द ध न            | त द न    |  थ ध   | ऋ औ
प फ        | ब भ म            | प ब म   | फ भ    | लृ
श ष स     | य व र ल ह     | य व र ल| शषसह|
विवार ---= जीन वर्णों के उच्चारण करते समय स्वरयंत्र खुला रहता है उनको विवार प्रयत्न कहते हैं
संवार ---= जीन वर्णों के उच्चारण करते समय स्वरयंत्र संकुचित रहता है, उनको संवार प्रयत्न कहते हैं
श्वास---= कुछ वर्णों के उच्चारण में श्वास चलता है, उन्हे श्वास प्रयत्न कहते हैं
अघोष---= उच्चारण में गुंज के न होने को अघोष प्रयत्न कहते हैं
अल्पप्राण---= वर्ण के उच्चारण में प्राणवायु के अल्पउपयोग को अल्पप्राण प्रयत्न कहते हैं
महाप्राण---= प्राणवायु के अधिक उपयोग को महाप्राण प्रयत्न कहते हैं

Sunday, 21 August 2016

global..wrming..and spirichual..: संस्कृत पाठ ( 2 )

global..wrming..and spirichual..: संस्कृत पाठ ( 2 ): 21_8_2016_सुबह 11"10 पाठ (1) स्वामि शिशुविदेहानन्द सरस्वती श्रिदुर्गारक्ताम्बरा शक्तिपीठ संस्थापक अध्यक्ष स्वामि शिशुविदेहानन्द सरस...

संस्कृत पाठ ( 2 )

21_8_2016_सुबह 11"10
पाठ (1)
स्वामि शिशुविदेहानन्द सरस्वती
श्रिदुर्गारक्ताम्बरा शक्तिपीठ संस्थापक अध्यक्ष स्वामि शिशुविदेहानन्द सरस्वती तिवारी महाराज ' तिवारी का बाडा ' कारंजा दत्त 444105 जिला वाशिम महाराष्ट्र

|| अनंतजन अंतरराष्ट्रिय मानवचेतना आंदोलन ||

माँ मीराबाई ह तिवारी द्वारा आयोजित कार्यक्रम सव्वाकरोड मिट्टी के शिवलिंगम् निर्माण
में शामिल विश्व के अनेकानेक

 सव्वाकरोड शिवलिंगम् के
पहले चरण

एकतालिस लाख  ग्यारह हजार पांच सौ
41 लाख  11 हजार 500
उद्देश ___ ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन हो कर जो
निगेटीवीटीयां उत्पन्न हुई उनको दूर करना ओजोन की परत के गढ्ढे भरना
 जल संरक्षण कार्य
 माँ मीराबाई ह तिवारी द्वारा आयोजित कार्यक्रम सववाकरोड मिट्टी के शिवलिंग निर्माण में विश्व
के   अनेकानेक व्यक्ति
शिवलिंगम् निर्माण
||| अथातों संस्कृति जिद्न्यासा |||

कीसी भी देश या राष्ट्र को
जाननेहेतु उसकी संस्कृति का ज्ञान परम आवश्यक है
संस्कृत भाषा आर्यावर्त की संस्कृति का मुल है
आर्यावर्त का समस्त चिंतन इस भाषा में
सुरक्षित है, लेकिन इसको समझने हेतु संस्कृत का का अभ्यास बहुत ही आवश्यक है, संस्कृत यह आर्यावर्त की ग्यान विग्यान की एक अमूल्य निधि है
इसी भाषा से मानव जाति के
अति आदि साहित्य जो वेदों के नाम से जाने जाते हैं, की रचनाओं का सृजन हुआ, जो अपौरुषेय है, इन्हीं के द्वारा आध्यात्मिक प्रकाश के आदि स्तोत्र उपनिषदों की भी रचनाऐ हूई
इसी भाषा में जो ग्यान सामग्री का सृजन वह आज के समय में बहुत उपयुक्त है, क्योंकि संस्कृत भाषा आर्यावर्त एवं विश्व की एकात्मता विशेष रूप से एशिया द्वीप की सांस्कृतिक और साहित्यीक चेतना का आधार है,  इसीलिए आर्यावर्त की भाषाओं में तथा चिन जापान थाइलैंड मंगोलिया ईनडोनेशीया श्रीलंका के देशों की भाषाओं में संस्कृत के शब्द बहुत से मिलते हैं,
संस्कृत में चिकित्सा पद्धति धर्म दर्शन व्याकरण गणित रसायन खगोल विज्ञान ज्योतिष शास्त्र तंत्र योग कुल मिलाकर'84' प्रकार के विषय पर साहित्य उपलब्ध उपलब्ध'18' वी शताब्दी में रेक्स चाॅज्झनीन एवं गोम्स के भाषनियम प्रकाशित होने के बाद
संस्कृत भाषा विश्व भाषा के रूप में प्रगट हूई
सम् उपसर्ग स् आगम और
कृ
धातु
 सम् + स् + कृ + त
के मिलने से
संस्कृत शब्द बना है, जिसका तात्पर्य यह है कि
विकल्प बहुल वेद भाषा का स्थिरीकृत रूप = अर्थ यह हुआ कि वह भाषा जिसका विश्लेषण विवरण एवं संस्कार व्याकरण शास्त्र वेत्ताओं द्वारा किया गया है
ऋङदण्डि ने भी संस्कृत को " संस्कृतं नाम दैवी वाक् अन्वाख्याता महर्षिभि: |'
संस्कृत वर्णमाला
1) स्वर
2) व्यंजन
3) अयोगवाह
स्वर वर्ण --वह वर्ण जो बगैर किसी अन्य वर्ण की मदद से उच्चारित किये जा सकते हैं,  उन्हे स्वर वर्ण कहते हैं
अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ लृ ए ऐ ओ एवं औ
2) व्यंजन वर्ण -- वह वर्ण जो ' स्वर वर्ण ' की सहायता से उच्चारित होते हैं, उन्हें व्यंजन वर्ण कहते हैं
क ख ग घ ङ   | च छ ज झ ञ |
ट ठ ड ढ ण     | त थ द ध न |
प फ ब भ म      | य र ल व |
श ष स ह
3) अयोगवाह वर्ण -- वह वर्ण जो संस्कृत भाषा में उपयोग तो होते हैं, किन्तु उनका स्वर एवं व्यंजन वर्णों के अंतर्गत गणना नही कर सकते उन्हें अयोगवाह कहते हैं.
अनुस्वार -- किसी वर्ण के उच्चारण के बाद की गूंज यह अनुस्वार है
ईसको
'__'__' ईस संकेत से दिखाया गया है
उदाहरण -- अं इं उं
अं ' रामं '
इं  ' हरिं  '
उं  ' भानुं '
विसर्ग -- जब वर्ण का उच्चारण स्वभावत: रूक जाता है, तब एक विशेष प्रकार की ध्वनि सुनाई देती है
ईस ध्वनि को विसर्ग कहते हैं.
ईसे वर्ण के अंत में ':' ईस चिन्ह से दिखाया जाता है
उदाहरण :- राम:  हरि:
_____________________________________
पाठ ' 2 ' आज तारिख 21_8_2016

वर्ण वर्गीकरण
उच्चारण में जो
समय लगता है, उसका विचार किया गया तो प्रत्येक स्वर का
र्हस्व  ' एक मात्र उच्चारण काल
दिर्घ   ' द्वि मात्रिक उच्चारण काल
एवं    '  बहु'मात्रिक उच्चारण काल
प्लुप्त ऐसे तीन भेद है
मुल रूप से पांच ही स्वर है
अ, इ, उ, ऋ, लृ
ईनमे प्रथम चार के दीर्घ रूपों आ , ई , ऊ , ऋ , मिलकर
नौ स्वर है
लृ का दीर्घ नहीं होता,  अ और इ , या ई का संयुक्त रूप ए , अ , या आ और ई का संयुक्त रूप ऐ
अ आ उ,  ऊ का संयुक्त रूप ओ तथा अ या आ और ओ का संयुक्त रूप औ होता है,
ईस प्रकार संयुक्त स्वरों से मिलकर ' स्वरों ' की संख्या तेरह
हो जाती है.
संस्कृत व्याकरण मे उच्चारण की दृष्टि से स्वरों की विशेषताएं 1) उच्चारण काल , 2) बलाघात , 3) अनु नासिकता = नासिका के मदद से उच्चारण करना
स्वरों के र्हस्व , दीर्घ , प्लुत :- उच्चारण काल पर आधारित है
पलक उठने और गिरने के समय को एकमात्रा काल जाता है
ईस दृष्टि से एक मात्र वाला = एक मात्रिक उच्चारण को '   र्हस्व ' कहते हैं
उदाहरण अ द्विमात्रिक को दिर्घ :- अ ऽ का उच्चारण
तथा बहुमात्रिक या एक ही स्वर को देर तक उच्चारित
होने पर प्लुत कहते हैं
उदाहरण :- अ ऽऽ , आ ऽऽऽ
कण्ठ आदि उच्चारण स्थानों के ऊपरी एवं निचले से जोर देकर किए जाने वाले उच्चारण के , स्वर वर्णों का
उदात्त
अनुदात्त
एवं स्वरित , ऐसे तिन भेद होते हैं
उच्चारण स्थान के साथ जीभ को दृढतापुर्वक लगाकर उच्चरित होने वाले स्वर ' बलाघात ' के साथ उच्चारित होते हैं ,अत: ईन्हे उदात्त कहते हैं
कम बलाघात के साथ उच्चरित होने वाले स्वर ' अनुदात्त '
कहलाते हैं
जीन स्वर वर्णों के उच्चारण ' संतुलित बलाघात ' पूर्वक होते हैं, वे ' स्वरित ' कहलाते हैं
ईन सभी प्रकार के स्वरों का उच्चारण दो प्रकार से किया जा सकता है, जो नासिका के मदद से उच्चरित हो वे, उन्हे अनुनासिक कहते हैं,
और जो बीना नासिका के मदद से उच्चरित होते हैं, उन्हे अननुनासिक कहते हैं

Saturday, 20 August 2016

आओ संस्कृत सिखे

[19:25 20-8-2016] स्वामि शिशुविदेहानन्द सरस: 20_8_2016_
स्वामि शिशुविदेहानन्द सरस्वती
श्रिदुर्गारक्ताम्बरा शक्तिपीठ संस्थापक अध्यक्ष स्वामि शिशुविदेहानन्द सरस्वती तिवारी महाराज ' तिवारी का बाडा ' कारंजा दत्त 444105 जिला वाशिम महाराष्ट्र

|| अनंतजन अंतरराष्ट्रिय मानवचेतना आंदोलन ||

माँ मीराबाई ह तिवारी द्वारा आयोजित कार्यक्रम सव्वाकरोड मिट्टी के शिवलिंगम् निर्माण
में शामिल विश्व के अनेकानेक

 सव्वाकरोड शिवलिंगम् के
पहले चरण

एकतालिस लाख  ग्यारह हजार पांच सौ
41 लाख  11 हजार 500
उद्देश ___ ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन हो कर जो
निगेटीवीटीयां उत्पन्न हुई उनको दूर करना ओजोन की परत के गढ्ढे भरना
 जल संरक्षण कार्य
 माँ मीराबाई ह तिवारी द्वारा आयोजित कार्यक्रम सववाकरोड मिट्टी के शिवलिंग निर्माण में विश्व
के   अनेकानेक व्यक्ति
शिवलिंगम् निर्माण
||| अथातों संस्कृति जिद्न्यासा |||

कीसी भी देश या राष्ट्र को
जाननेहेतु उसकी संस्कृति का ज्ञान परम आवश्यक है
संस्कृत भाषा आर्यावर्त की संस्कृति का मुल है
आर्यावर्त का समस्त चिंतन इस भाषा में
सुरक्षित है, लेकिन इसको समझने हेतु संस्कृत का का अभ्यास बहुत ही आवश्यक है, संस्कृत यह आर्यावर्त की ग्यान विग्यान की एक अमूल्य निधि है
इसी भाषा से मानव जाति के
अति आदि साहित्य जो वेदों के नाम से जाने जाते हैं, की रचनाओं का सृजन हुआ, जो अपौरुषेय है, इन्हीं के द्वारा आध्यात्मिक प्रकाश के आदि स्तोत्र उपनिषदों की भी रचनाऐ हूई
इसी भाषा में जो ग्यान सामग्री का सृजन वह आज के समय में बहुत उपयुक्त है, क्योंकि संस्कृत भाषा आर्यावर्त एवं विश्व की एकात्मता विशेष रूप से एशिया द्वीप की सांस्कृतिक और साहित्यीक चेतना का आधार है,  इसीलिए आर्यावर्त की भाषाओं में तथा चिन जापान थाइलैंड मंगोलिया ईनडोनेशीया श्रीलंका के देशों की भाषाओं में संस्कृत के शब्द बहुत से मिलते हैं,
 संस्कृत में चिकित्सा पद्धति धर्म दर्शन व्याकरण गणित रसायन खगोल विज्ञान ज्योतिष शास्त्र तंत्र योग कुल मिलाकर'84' प्रकार के विषय पर साहित्य उपलब्ध है
'18' वी शताब्दी में रेक्स चाॅज्झनीन एवं गोम्स के भाषनियम प्रकाशित होने के बाद
संस्कृत भाषा विश्व भाषा के रूप में प्रगट हूई
सम् उपसर्ग स् आगम और
कृ
धातु
 सम् + स् + कृ + त
के मिलने से
संस्कृत शब्द बना है, जिसका तात्पर्य यह है कि
विकल्प बहुल वेद भाषा का स्थिरीकृत रूप = अर्थ यह हुआ कि वह भाषा जिसका विश्लेषण विवरण एवं संस्कार व्याकरण शास्त्र वेत्ताओं द्वारा किया गया है
ऋङदण्डि ने भी संस्कृत को " संस्कृतं नाम दैवी वाक् अन्वाख्याता महर्षिभि: |' करके परिभाषित किया है,

संस्कृत वर्णमाला
1) स्वर
2) व्यंजन
3) अयोगवाह

स्वर वर्ण --वह वर्ण जो बगैर किसी अन्य वर्ण की मदद से उच्चारित किये जा सकते हैं,  उन्हे स्वर वर्ण कहते हैं
अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ लृ ए ऐ ओ एवं औ

2) व्यंजन वर्ण -- वह वर्ण जो ' स्वर वर्ण ' की सहायता से उच्चारित होते हैं, उन्हें व्यंजन वर्ण कहते हैं

क ख ग घ ङ   | च छ ज झ ञ |
ट ठ ड ढ ण     | त थ द ध न |
प फ ब भ म      | य र ल व |
श ष स ह

3) अयोगवाह वर्ण -- वह वर्ण जो संस्कृत भाषा में उपयोग तो होते हैं, किन्तु उनका स्वर एवं व्यंजन वर्णों के अंतर्गत गणना नही कर सकते उन्हें अयोगवाह कहते हैं.

अनुस्वार -- किसी वर्ण के उच्चारण के बाद की गूंज यह अनुस्वार है
ईसको
'__'__' ईस संकेत से दिखाया गया है
उदाहरण -- अं इं उं
अं ' रामं '
इं  ' हरिं  '
उं  ' भानुं '

विसर्ग -- जब वर्ण का उच्चारण स्वभावत: रूक जाता है, तब एक विशेष प्रकार की ध्वनि सुनाई देती है
ईस ध्वनि को विसर्ग कहते हैं.
ईसे वर्ण के अंत में ':' ईस चिन्ह से दिखाया जाता है
उदाहरण :- राम:  हरि:

Sunday, 31 July 2016

सदुरु''वास.....+++

मैंने''उसे''कहा'' अब''जा''दुबारा''मत''आना'''{ यह_थी''_परीक्षा_{ और_परीक्षा''किसी''को''सचेत_कर_के_नहीं_ली_जाती_}''वह'''फ़ैल'''हो''गया'''}...उसने_एकदम_से_कहा_ठीक_है_स्वामीजी_
मै''समझ''गया'' की''_यह_वो_पात्र_नहीं_है_जिसमे_ सिद्ध''शक्तिया''उंडेली _जाए''''
मेरे''साथ''कई''कड़ी''प्परिक्षाये''हुई''थी'''और_यह_उन्ही_सदुरु_की_कृपा_थी_की_मै_हर_परीक्षा_में_मेरिट_आया_मै''हर''घडी_हर_पल_ 'जागरण'''_करता_था_मै_जानता_था_मै_यहाँ_सद्गुरु'वास''में''क्यों''आया''हु'''और''मुझे'''_कोन_सी_वह_प्राप्ति_ छोडनी_है_जो_ 'प्राप्ती_के_बाद_की''
कई''शिष्य''ऐसे''होते''है ''''जो''एक_कदम_सदुरु''वास''में_और_दूसरा_कदम_ भागने..._हेतु_तत्पर_रखते_है_

वे_गुरु_से_नहीं_वरन _अपने'आप_से_धोखा_करते_रहते_है_

Wednesday, 27 July 2016

उद्देश _ओजोन की परत मे हूए गढ्ढे भरना

स्वामि शिशुविदेहानन्द सरस्वती
श्रिदुर्गारक्ताम्बरा शक्तिपीठ संस्थापक अध्यक्ष स्वामि शिशुविदेहानन्द सरस्वती तिवारी महाराज ' तिवारी का बाडा ' कारंजा दत्त 444105 जिला वाशिम महाराष्ट्र

|| अनंतजन अंतरराष्ट्रिय मानवचेतना आंदोलन ||

माँ मीराबाई ह तिवारी द्वारा आयोजित कार्यक्रम सव्वाकरोड मिट्टी के शिवलिंगम् निर्माण
में शामिल विश्व के अनेकानेक

 सव्वाकरोड शिवलिंगम् के
पहले चरण

एकतालिस लाख ईकावनहजार
41 लाख  51 हजार

उद्देश ___ ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन हो कर जो
निगेटीवीटीयां उत्पन्न हुई उनको दूर करना ओजोन की परत के गढ्ढे भरना

[20:34 | 27-7-2016] स्वामि शिशुविदेहानन्द सरस्वती: माँ मीराबाई ह तिवारी द्वारा आयोजित कार्यक्रम सववाकरोड मिट्टी के  शिवलिंगम् निर्माण के
अंतर्गत
एकतालिस लाख ग्यारह हजार पांच सौ
शिवलिंगों का विसर्जन किया गया,  अब आगे के
89 लाख
शिवलिंग का निर्माण कार्य में
आज से शुरू
किया
मुझ से

Sunday, 17 July 2016

Axis Mundi{ Mondy }...+ सब्र्र्झंझकक्स्र्र

वास्तव 'में' इस' Axis mundi...याने'' श्ब्झझ्झ्र्र
का''मूल'स्थान' हमारे'सद'गुरुदेव'{ श्रीत्रिलोक्चंद'अखंडानन्द'सरस्वति''} के'आश्रम' ॐ_पर्वत''पर''है''जो''की'' कैलास'पर्वत' की' उत्तल्क्झ क्षेत्र'में'
२९|९८७३६९ '' उत्तर''विभान्श''पर'स्थित''है''
जहा''वास्तव''में''एकदम''ज़ीरो'
ग्रवीटी
है...मुझे_इस_विषय_में_अनेक{सिमित''}लोगो_ने_{इसका''सटीक_स्थान}''पूछा_लेकिन_मैंने_नहीं_बताया_ क्योकि_लोग_ उसका_सिर्फ_ कमर्शियल''एवं'' व्यभिज्जिक'उपयोग''{ दू' रुपयोग}करते_है_इस_हेतु_मुझे_५० करोड़'की'पेशकश'भी'की'गई''लेकिन'नहीं''
मै''बिका''नहीं''मै''अपने_वैदिक_मूल्यों_को_रुपयों_में_नहीं_तोलता...

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