21_8_2016_सुबह 11"10
पाठ (1)
स्वामि शिशुविदेहानन्द सरस्वती
श्रिदुर्गारक्ताम्बरा शक्तिपीठ संस्थापक अध्यक्ष स्वामि शिशुविदेहानन्द सरस्वती तिवारी महाराज ' तिवारी का बाडा ' कारंजा दत्त 444105 जिला वाशिम महाराष्ट्र
|| अनंतजन अंतरराष्ट्रिय मानवचेतना आंदोलन ||
माँ मीराबाई ह तिवारी द्वारा आयोजित कार्यक्रम सव्वाकरोड मिट्टी के शिवलिंगम् निर्माण
में शामिल विश्व के अनेकानेक
सव्वाकरोड शिवलिंगम् के
पहले चरण
एकतालिस लाख ग्यारह हजार पांच सौ
41 लाख 11 हजार 500
उद्देश ___ ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन हो कर जो
निगेटीवीटीयां उत्पन्न हुई उनको दूर करना ओजोन की परत के गढ्ढे भरना
जल संरक्षण कार्य
माँ मीराबाई ह तिवारी द्वारा आयोजित कार्यक्रम सववाकरोड मिट्टी के शिवलिंग निर्माण में विश्व
के अनेकानेक व्यक्ति
शिवलिंगम् निर्माण
||| अथातों संस्कृति जिद्न्यासा |||
कीसी भी देश या राष्ट्र को
जाननेहेतु उसकी संस्कृति का ज्ञान परम आवश्यक है
संस्कृत भाषा आर्यावर्त की संस्कृति का मुल है
आर्यावर्त का समस्त चिंतन इस भाषा में
सुरक्षित है, लेकिन इसको समझने हेतु संस्कृत का का अभ्यास बहुत ही आवश्यक है, संस्कृत यह आर्यावर्त की ग्यान विग्यान की एक अमूल्य निधि है
इसी भाषा से मानव जाति के
अति आदि साहित्य जो वेदों के नाम से जाने जाते हैं, की रचनाओं का सृजन हुआ, जो अपौरुषेय है, इन्हीं के द्वारा आध्यात्मिक प्रकाश के आदि स्तोत्र उपनिषदों की भी रचनाऐ हूई
इसी भाषा में जो ग्यान सामग्री का सृजन वह आज के समय में बहुत उपयुक्त है, क्योंकि संस्कृत भाषा आर्यावर्त एवं विश्व की एकात्मता विशेष रूप से एशिया द्वीप की सांस्कृतिक और साहित्यीक चेतना का आधार है, इसीलिए आर्यावर्त की भाषाओं में तथा चिन जापान थाइलैंड मंगोलिया ईनडोनेशीया श्रीलंका के देशों की भाषाओं में संस्कृत के शब्द बहुत से मिलते हैं,
संस्कृत में चिकित्सा पद्धति धर्म दर्शन व्याकरण गणित रसायन खगोल विज्ञान ज्योतिष शास्त्र तंत्र योग कुल मिलाकर'84' प्रकार के विषय पर साहित्य उपलब्ध उपलब्ध'18' वी शताब्दी में रेक्स चाॅज्झनीन एवं गोम्स के भाषनियम प्रकाशित होने के बाद
संस्कृत भाषा विश्व भाषा के रूप में प्रगट हूई
सम् उपसर्ग स् आगम और
कृ
धातु
सम् + स् + कृ + त
के मिलने से
संस्कृत शब्द बना है, जिसका तात्पर्य यह है कि
विकल्प बहुल वेद भाषा का स्थिरीकृत रूप = अर्थ यह हुआ कि वह भाषा जिसका विश्लेषण विवरण एवं संस्कार व्याकरण शास्त्र वेत्ताओं द्वारा किया गया है
ऋङदण्डि ने भी संस्कृत को " संस्कृतं नाम दैवी वाक् अन्वाख्याता महर्षिभि: |'
संस्कृत वर्णमाला
1) स्वर
2) व्यंजन
3) अयोगवाह
स्वर वर्ण --वह वर्ण जो बगैर किसी अन्य वर्ण की मदद से उच्चारित किये जा सकते हैं, उन्हे स्वर वर्ण कहते हैं
अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ लृ ए ऐ ओ एवं औ
2) व्यंजन वर्ण -- वह वर्ण जो ' स्वर वर्ण ' की सहायता से उच्चारित होते हैं, उन्हें व्यंजन वर्ण कहते हैं
क ख ग घ ङ | च छ ज झ ञ |
ट ठ ड ढ ण | त थ द ध न |
प फ ब भ म | य र ल व |
श ष स ह
3) अयोगवाह वर्ण -- वह वर्ण जो संस्कृत भाषा में उपयोग तो होते हैं, किन्तु उनका स्वर एवं व्यंजन वर्णों के अंतर्गत गणना नही कर सकते उन्हें अयोगवाह कहते हैं.
अनुस्वार -- किसी वर्ण के उच्चारण के बाद की गूंज यह अनुस्वार है
ईसको
'__'__' ईस संकेत से दिखाया गया है
उदाहरण -- अं इं उं
अं ' रामं '
इं ' हरिं '
उं ' भानुं '
विसर्ग -- जब वर्ण का उच्चारण स्वभावत: रूक जाता है, तब एक विशेष प्रकार की ध्वनि सुनाई देती है
ईस ध्वनि को विसर्ग कहते हैं.
ईसे वर्ण के अंत में ':' ईस चिन्ह से दिखाया जाता है
उदाहरण :- राम: हरि:
_____________________________________
पाठ ' 2 ' आज तारिख 21_8_2016
वर्ण वर्गीकरण
उच्चारण में जो
समय लगता है, उसका विचार किया गया तो प्रत्येक स्वर का
र्हस्व ' एक मात्र उच्चारण काल
दिर्घ ' द्वि मात्रिक उच्चारण काल
एवं ' बहु'मात्रिक उच्चारण काल
प्लुप्त ऐसे तीन भेद है
मुल रूप से पांच ही स्वर है
अ, इ, उ, ऋ, लृ
ईनमे प्रथम चार के दीर्घ रूपों आ , ई , ऊ , ऋ , मिलकर
नौ स्वर है
लृ का दीर्घ नहीं होता, अ और इ , या ई का संयुक्त रूप ए , अ , या आ और ई का संयुक्त रूप ऐ
अ आ उ, ऊ का संयुक्त रूप ओ तथा अ या आ और ओ का संयुक्त रूप औ होता है,
ईस प्रकार संयुक्त स्वरों से मिलकर ' स्वरों ' की संख्या तेरह
हो जाती है.
संस्कृत व्याकरण मे उच्चारण की दृष्टि से स्वरों की विशेषताएं 1) उच्चारण काल , 2) बलाघात , 3) अनु नासिकता = नासिका के मदद से उच्चारण करना
स्वरों के र्हस्व , दीर्घ , प्लुत :- उच्चारण काल पर आधारित है
पलक उठने और गिरने के समय को एकमात्रा काल जाता है
ईस दृष्टि से एक मात्र वाला = एक मात्रिक उच्चारण को ' र्हस्व ' कहते हैं
उदाहरण अ द्विमात्रिक को दिर्घ :- अ ऽ का उच्चारण
तथा बहुमात्रिक या एक ही स्वर को देर तक उच्चारित
होने पर प्लुत कहते हैं
उदाहरण :- अ ऽऽ , आ ऽऽऽ
कण्ठ आदि उच्चारण स्थानों के ऊपरी एवं निचले से जोर देकर किए जाने वाले उच्चारण के , स्वर वर्णों का
उदात्त
अनुदात्त
एवं स्वरित , ऐसे तिन भेद होते हैं
उच्चारण स्थान के साथ जीभ को दृढतापुर्वक लगाकर उच्चरित होने वाले स्वर ' बलाघात ' के साथ उच्चारित होते हैं ,अत: ईन्हे उदात्त कहते हैं
कम बलाघात के साथ उच्चरित होने वाले स्वर ' अनुदात्त '
कहलाते हैं
जीन स्वर वर्णों के उच्चारण ' संतुलित बलाघात ' पूर्वक होते हैं, वे ' स्वरित ' कहलाते हैं
ईन सभी प्रकार के स्वरों का उच्चारण दो प्रकार से किया जा सकता है, जो नासिका के मदद से उच्चरित हो वे, उन्हे अनुनासिक कहते हैं,
और जो बीना नासिका के मदद से उच्चरित होते हैं, उन्हे अननुनासिक कहते हैं
पाठ (1)
स्वामि शिशुविदेहानन्द सरस्वती
श्रिदुर्गारक्ताम्बरा शक्तिपीठ संस्थापक अध्यक्ष स्वामि शिशुविदेहानन्द सरस्वती तिवारी महाराज ' तिवारी का बाडा ' कारंजा दत्त 444105 जिला वाशिम महाराष्ट्र
|| अनंतजन अंतरराष्ट्रिय मानवचेतना आंदोलन ||
माँ मीराबाई ह तिवारी द्वारा आयोजित कार्यक्रम सव्वाकरोड मिट्टी के शिवलिंगम् निर्माण
में शामिल विश्व के अनेकानेक
सव्वाकरोड शिवलिंगम् के
पहले चरण
एकतालिस लाख ग्यारह हजार पांच सौ
41 लाख 11 हजार 500
उद्देश ___ ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन हो कर जो
निगेटीवीटीयां उत्पन्न हुई उनको दूर करना ओजोन की परत के गढ्ढे भरना
जल संरक्षण कार्य
माँ मीराबाई ह तिवारी द्वारा आयोजित कार्यक्रम सववाकरोड मिट्टी के शिवलिंग निर्माण में विश्व
के अनेकानेक व्यक्ति
शिवलिंगम् निर्माण
||| अथातों संस्कृति जिद्न्यासा |||
कीसी भी देश या राष्ट्र को
जाननेहेतु उसकी संस्कृति का ज्ञान परम आवश्यक है
संस्कृत भाषा आर्यावर्त की संस्कृति का मुल है
आर्यावर्त का समस्त चिंतन इस भाषा में
सुरक्षित है, लेकिन इसको समझने हेतु संस्कृत का का अभ्यास बहुत ही आवश्यक है, संस्कृत यह आर्यावर्त की ग्यान विग्यान की एक अमूल्य निधि है
इसी भाषा से मानव जाति के
अति आदि साहित्य जो वेदों के नाम से जाने जाते हैं, की रचनाओं का सृजन हुआ, जो अपौरुषेय है, इन्हीं के द्वारा आध्यात्मिक प्रकाश के आदि स्तोत्र उपनिषदों की भी रचनाऐ हूई
इसी भाषा में जो ग्यान सामग्री का सृजन वह आज के समय में बहुत उपयुक्त है, क्योंकि संस्कृत भाषा आर्यावर्त एवं विश्व की एकात्मता विशेष रूप से एशिया द्वीप की सांस्कृतिक और साहित्यीक चेतना का आधार है, इसीलिए आर्यावर्त की भाषाओं में तथा चिन जापान थाइलैंड मंगोलिया ईनडोनेशीया श्रीलंका के देशों की भाषाओं में संस्कृत के शब्द बहुत से मिलते हैं,
संस्कृत में चिकित्सा पद्धति धर्म दर्शन व्याकरण गणित रसायन खगोल विज्ञान ज्योतिष शास्त्र तंत्र योग कुल मिलाकर'84' प्रकार के विषय पर साहित्य उपलब्ध उपलब्ध'18' वी शताब्दी में रेक्स चाॅज्झनीन एवं गोम्स के भाषनियम प्रकाशित होने के बाद
संस्कृत भाषा विश्व भाषा के रूप में प्रगट हूई
सम् उपसर्ग स् आगम और
कृ
धातु
सम् + स् + कृ + त
के मिलने से
संस्कृत शब्द बना है, जिसका तात्पर्य यह है कि
विकल्प बहुल वेद भाषा का स्थिरीकृत रूप = अर्थ यह हुआ कि वह भाषा जिसका विश्लेषण विवरण एवं संस्कार व्याकरण शास्त्र वेत्ताओं द्वारा किया गया है
ऋङदण्डि ने भी संस्कृत को " संस्कृतं नाम दैवी वाक् अन्वाख्याता महर्षिभि: |'
संस्कृत वर्णमाला
1) स्वर
2) व्यंजन
3) अयोगवाह
स्वर वर्ण --वह वर्ण जो बगैर किसी अन्य वर्ण की मदद से उच्चारित किये जा सकते हैं, उन्हे स्वर वर्ण कहते हैं
अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ लृ ए ऐ ओ एवं औ
2) व्यंजन वर्ण -- वह वर्ण जो ' स्वर वर्ण ' की सहायता से उच्चारित होते हैं, उन्हें व्यंजन वर्ण कहते हैं
क ख ग घ ङ | च छ ज झ ञ |
ट ठ ड ढ ण | त थ द ध न |
प फ ब भ म | य र ल व |
श ष स ह
3) अयोगवाह वर्ण -- वह वर्ण जो संस्कृत भाषा में उपयोग तो होते हैं, किन्तु उनका स्वर एवं व्यंजन वर्णों के अंतर्गत गणना नही कर सकते उन्हें अयोगवाह कहते हैं.
अनुस्वार -- किसी वर्ण के उच्चारण के बाद की गूंज यह अनुस्वार है
ईसको
'__'__' ईस संकेत से दिखाया गया है
उदाहरण -- अं इं उं
अं ' रामं '
इं ' हरिं '
उं ' भानुं '
विसर्ग -- जब वर्ण का उच्चारण स्वभावत: रूक जाता है, तब एक विशेष प्रकार की ध्वनि सुनाई देती है
ईस ध्वनि को विसर्ग कहते हैं.
ईसे वर्ण के अंत में ':' ईस चिन्ह से दिखाया जाता है
उदाहरण :- राम: हरि:
_____________________________________
पाठ ' 2 ' आज तारिख 21_8_2016
वर्ण वर्गीकरण
उच्चारण में जो
समय लगता है, उसका विचार किया गया तो प्रत्येक स्वर का
र्हस्व ' एक मात्र उच्चारण काल
दिर्घ ' द्वि मात्रिक उच्चारण काल
एवं ' बहु'मात्रिक उच्चारण काल
प्लुप्त ऐसे तीन भेद है
मुल रूप से पांच ही स्वर है
अ, इ, उ, ऋ, लृ
ईनमे प्रथम चार के दीर्घ रूपों आ , ई , ऊ , ऋ , मिलकर
नौ स्वर है
लृ का दीर्घ नहीं होता, अ और इ , या ई का संयुक्त रूप ए , अ , या आ और ई का संयुक्त रूप ऐ
अ आ उ, ऊ का संयुक्त रूप ओ तथा अ या आ और ओ का संयुक्त रूप औ होता है,
ईस प्रकार संयुक्त स्वरों से मिलकर ' स्वरों ' की संख्या तेरह
हो जाती है.
संस्कृत व्याकरण मे उच्चारण की दृष्टि से स्वरों की विशेषताएं 1) उच्चारण काल , 2) बलाघात , 3) अनु नासिकता = नासिका के मदद से उच्चारण करना
स्वरों के र्हस्व , दीर्घ , प्लुत :- उच्चारण काल पर आधारित है
पलक उठने और गिरने के समय को एकमात्रा काल जाता है
ईस दृष्टि से एक मात्र वाला = एक मात्रिक उच्चारण को ' र्हस्व ' कहते हैं
उदाहरण अ द्विमात्रिक को दिर्घ :- अ ऽ का उच्चारण
तथा बहुमात्रिक या एक ही स्वर को देर तक उच्चारित
होने पर प्लुत कहते हैं
उदाहरण :- अ ऽऽ , आ ऽऽऽ
कण्ठ आदि उच्चारण स्थानों के ऊपरी एवं निचले से जोर देकर किए जाने वाले उच्चारण के , स्वर वर्णों का
उदात्त
अनुदात्त
एवं स्वरित , ऐसे तिन भेद होते हैं
उच्चारण स्थान के साथ जीभ को दृढतापुर्वक लगाकर उच्चरित होने वाले स्वर ' बलाघात ' के साथ उच्चारित होते हैं ,अत: ईन्हे उदात्त कहते हैं
कम बलाघात के साथ उच्चरित होने वाले स्वर ' अनुदात्त '
कहलाते हैं
जीन स्वर वर्णों के उच्चारण ' संतुलित बलाघात ' पूर्वक होते हैं, वे ' स्वरित ' कहलाते हैं
ईन सभी प्रकार के स्वरों का उच्चारण दो प्रकार से किया जा सकता है, जो नासिका के मदद से उच्चरित हो वे, उन्हे अनुनासिक कहते हैं,
और जो बीना नासिका के मदद से उच्चरित होते हैं, उन्हे अननुनासिक कहते हैं
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