Friday, 3 May 2013

om raksho_hannam

रक्षो हण म  त्रक्शेभ्योम   रक्शोहान्न्म ..

यह केवल रक्षा मांगने की अभ्भुत सज्ञ नह है यह है ..

अक  ओज जो निहारिकाओ ..कि।क्रिविज ...स्ग्याओ की आर्त __त्रेक्श्नाओ ..
के सारगर्भित {..पोटेंशी }..

उपहरत ..अणि_ क्रोस्जी कर्निकाओ की ...''संपत ..''..द्दृश्नाये भी जिन्हें

उपहसित करे .....

यह वृत्ति ..भिक शुकी .....ॐ स्वस्तिनो इंद्रा व्रुदास्र्रवाहा ...

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