22_8_2016_रात्रि 8'31
स्वामि शिशुविदेहानन्द सरस्वती
श्रिदुर्गारक्ताम्बरा शक्तिपीठ संस्थापक अध्यक्ष स्वामि शिशुविदेहानन्द सरस्वती तिवारी महाराज ' तिवारी का बाडा ' कारंजा दत्त 444105 जिला वाशिम महाराष्ट्र
|| अनंतजन अंतरराष्ट्रिय मानवचेतना आंदोलन ||
माँ मीराबाई ह तिवारी द्वारा आयोजित कार्यक्रम सव्वाकरोड मिट्टी के शिवलिंगम् निर्माण
में शामिल विश्व के अनेकानेक
सव्वाकरोड शिवलिंगम् के
पहले चरण
एकतालिस लाख ग्यारह हजार पांच सौ
41 लाख 11 हजार 500
उद्देश ___ ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन हो कर जो
निगेटीवीटीयां उत्पन्न हुई उनको दूर करना ओजोन की परत के गढ्ढे भरना
जल संरक्षण कार्य
माँ मीराबाई ह तिवारी द्वारा आयोजित कार्यक्रम सववाकरोड मिट्टी के शिवलिंग निर्माण में विश्व के अनेकानेक व्यक्ति
||| अथातों संस्कृत जिद्न्यासा |||
पाठ (4) ता 22_8_2016 रात्रि'8'31"
व्यंजन तिन विभाग मे बांटे गए हैं,
स्पर्श, अंत:स्थ , उष्म |
क से म तक स्पर्श
य व र ल अंत:स्थ
श ष स ह ऊष्म
है
स्पर्श व्यंजन पाँच भागों में विभाजित है
कवर्ग - क ख ग घ ङ
चवर्ग - च छ ज झ ञ
टवर्ग - ट ठ ड ढ ण
तवर्ग - त थ द ध न
पवर्ग - प फ ब भ म
करण =जिव्हा सहीत निचला ओष्ठ " द्वारा उच्चारण स्थान कण्ठ तालु मुर्धा दंत को छूकर जिनका उच्चारण हो वे स्पर्श वर्ण कहलाते हैं, लेकिन ङ ञ ण न म के उच्चारण में केवल स्थान और करण का ही स्पर्श नहीं होता बल्कि सांस का कूछ भाग नाक से भी निकलता है
ईसीलीए ' ङ ञ ण न म को अनुनासिक कहते हैं
अंत:स्थ = य व र ल ' ईस नाम से स्पष्ट है कि ये वर्ण स्वर और व्यंजन के बीच के हैं | ईनके उच्चारण में करण का उच्चारणस्थान से थोडा स्पर्श होता है, अत: ईनहे
ईष्त्स्पृट भी कहते हैं.
व्यंजन होते हुए भी य व र ल , कभी-कभी क्रमशः इ उ ऋ लृ ऊ मे बदल जाते हैं,
उच्चारण -: स्थान के विचार से ' य ' तालव्य ,
' र ' मूर्धन्य ,
और ' ल ' दन्त्य तथा व दन्त्योष्ठ्य है | ' व ' का उच्चारण उपर के दंत पर नीचे वाले ओष्ठ से होता है |
उष्मवर्ण -: श ष स ह ये ध्वनियाँ सीटी की तरह निकलती है
' श ' तालव्य है
' ष ' मूर्धन्य है
' स ' दन्त्य है और ' ह ' कण्ठ्य है |
श का उच्चारण तालु से होने के कारण सीटी की तरह ध्वनि निकलती है,
विसर्ग का उच्चारण कण्ठ्य हकार की तरह होता है, और अनुस्वार का उच्चारण केवल नाक से ही होता है |
संस्कृत भाषा में प्रयुक्त होने वाले कुछ संयुक्त व्यंजन आज हिन्दी आदि कतिपय भाषाओं में स्वतंत्र व्यंजन के रूप में प्रयुक्त होने लगे हैं, उदाहरण -: क्ष त्र ज्ञ | ' क्ष ' यह क और ष के योग से बना है , त्र यह त् र् क् के योग से बना है
आदि वैदिक भाषा में तो ' क्ष् ', ' ज्ञ् ' यह शब्द ऊर्ज्क्ञ
संपातिय त्रैक्षणाओं सदृश चुने एवं बुने गये हैं
______________________________________________
पाठ (5) ता. 23_8_2016_रात्रि_8'50
कोई भी वाक्य बनाने में ' क्रिया ' की ही महत्वपूर्ण भूमिका
होती हैं, और वाक्य के क्रिया के कर्ता का भी उतना ही महत्व होता है,
कर्ता , प्रथम पुरूष , मध्यम पुरूष , उत्तम पुरूषों
एवं
एक_ द्वि _तथा_ बहुवचनों के भेद से
अनेक प्रकार का होता है,
उदाहरण -: स: गच्छति
तौ गच्छत:
ते गच्छन्ति
त्वं गच्छसि
अहं गच्छामि
आवां गच्छाव:
वयं गच्छाम:
अहं (हम)
आवाम् ( हम दोनों )
वयम् ( हम सब )
कर्तृपदों के साथ ' उत्तम पुरूषों की क्रिया ' गच्छामि ,
गच्छाव: , गच्छाम: ,
एवं
त्वं , युवाम् , यूयम् ,कर्तृपदों के साथ
मध्यम पुरूषों की
क्रिया गच्छसि , गच्छत: ,गच्छथ का प्रयोग किया गया है
संस्कृत भाषा में क्रियापदों के ईन रूपों के साथ कर्ता एवं
क्रियापद के बीच एक निश्चित सम्बन्ध होता है, यदि कर्ता
अहम्
अवाम्
वयम् , हो तो क्रिया पद वचनों के अनुसार ' उत्तम पुरूष ' का ही लागू होगा
ऐसै ही कर्तृपद
त्वम् _ युवाम् _ यूयम् ___ हो तो क्रिया पद वचनों के अनुसार ' मध्यम पुरूष ' का ही लागू होगा
और अलग प्रकार के कर्तृपदों के साथ क्रिया पद वचनों के अनुसार ' प्रथम पुरूष ' में ही लागू होगा
उदाहरण -: स: | सा | बाल: गच्छति
तौ | तै | बालौ गच्छत:
ते | ता: | बाला: गच्छन्ति
_____________________________________________
पाठ नंबर (6) आज दिनांक '27_8_2016_
उपस्थित होने के अर्थ में उपयोग होने वाली ' अस् ' धातु का वर्तमान काल के
' लट् लकार ' के प्रथम पुरुष एकवचन में ' अस्ति ' रूप बनता है, जिसका अर्थ है ' है '
ईसके साथ कर्ता के रूप में तद् सर्वनाम के प्रथमाएकवचन
' पुल्लिंग रूप ' स: ' का प्रयोग होगा एवं वाक्य बनेगा ' स: अस्ति: '= वह है
ईसीप्रकार 'तद् ' शब्द के ही पुल्लिंग में प्रथमा के
द्विवचन एवं बहुवचन के रूप ' तौ , ते ' का प्रयोग होगा और वाक्य ' तौ , स्त: ' =वह दोनो है, और ' ते सन्ति '
= वे है , ' अस् ' धातु लट् लकार के सभी पुरूषों एवं वचनों का प्रयोग बताता हूँ , इन में क्रमशः तद् , युष्मद् , अस्मद्
शब्दों का प्रयोग किया गया है
प्रथम पुरूष :- स: अस्ति = वह है = एकवचन
तौ स्त: = वे दोनो है = द्विवचन
ते सन्ति = वे सब है = बहुवचन
मध्यम पुरूष :- त्वम् असि = तुम हो = एकवचन
युवां स्थ: = तुम दोनो हो = द्विवचन
युयं स्थ: = तुम सब हो = बहुवचन
उत्तम पुरूष :- अहम् अस्मि = मै हूँ = एकवचन
आवां स्म : = हम दोनों है = द्विवचन
वयं स्म: = हम सब है = बहुवचन
करना , करने के अर्थ में प्रयोग होने वाली कृ धातु के वर्तमान काल के
वाचक लट् लकार के तीनो पुरूष एवं सभी वचनों के रूप
बताता हूँ, इनके साथ क्रमशः
तद् , युष्मद् , अस्मद् शब्दों का प्रयोग कीस प्रकार होगा यह बता रहा हूँ
प्रथम पुरूष एकवचन = स: करोति = वह करता है
प्रथम पुरूष द्विवचन = तौ कुरूत: = वे दोनों करते हैं
प्रथम पुरूष बहुवचन = ते कुर्वन्ति = वे सब करते हैं
मध्यम पुरूष एकवचन = त्वं करोषि = तुम करते हो
मध्यम पुरूष द्विवचन = युवां कुरूथ: = तुम दोनों करते हो
मध्यम पुरूष बहुवचन = युयं कुरूथ: = तुम सब करते हो
उत्तम पुरूष एकवचन = अहं करोमि = मै करता हूँ
उत्तम पुरूष द्विवचन = आवां कुर्व: = हम दोनों करते हैं
उत्तम पुरूष बहुवचन = वयं कुर्व: = हम सब करते हैं
स्वामि शिशुविदेहानन्द सरस्वती
श्रिदुर्गारक्ताम्बरा शक्तिपीठ संस्थापक अध्यक्ष स्वामि शिशुविदेहानन्द सरस्वती तिवारी महाराज ' तिवारी का बाडा ' कारंजा दत्त 444105 जिला वाशिम महाराष्ट्र
|| अनंतजन अंतरराष्ट्रिय मानवचेतना आंदोलन ||
माँ मीराबाई ह तिवारी द्वारा आयोजित कार्यक्रम सव्वाकरोड मिट्टी के शिवलिंगम् निर्माण
में शामिल विश्व के अनेकानेक
सव्वाकरोड शिवलिंगम् के
पहले चरण
एकतालिस लाख ग्यारह हजार पांच सौ
41 लाख 11 हजार 500
उद्देश ___ ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन हो कर जो
निगेटीवीटीयां उत्पन्न हुई उनको दूर करना ओजोन की परत के गढ्ढे भरना
जल संरक्षण कार्य
माँ मीराबाई ह तिवारी द्वारा आयोजित कार्यक्रम सववाकरोड मिट्टी के शिवलिंग निर्माण में विश्व के अनेकानेक व्यक्ति
||| अथातों संस्कृत जिद्न्यासा |||
पाठ (4) ता 22_8_2016 रात्रि'8'31"
व्यंजन तिन विभाग मे बांटे गए हैं,
स्पर्श, अंत:स्थ , उष्म |
क से म तक स्पर्श
य व र ल अंत:स्थ
श ष स ह ऊष्म
है
स्पर्श व्यंजन पाँच भागों में विभाजित है
कवर्ग - क ख ग घ ङ
चवर्ग - च छ ज झ ञ
टवर्ग - ट ठ ड ढ ण
तवर्ग - त थ द ध न
पवर्ग - प फ ब भ म
करण =जिव्हा सहीत निचला ओष्ठ " द्वारा उच्चारण स्थान कण्ठ तालु मुर्धा दंत को छूकर जिनका उच्चारण हो वे स्पर्श वर्ण कहलाते हैं, लेकिन ङ ञ ण न म के उच्चारण में केवल स्थान और करण का ही स्पर्श नहीं होता बल्कि सांस का कूछ भाग नाक से भी निकलता है
ईसीलीए ' ङ ञ ण न म को अनुनासिक कहते हैं
अंत:स्थ = य व र ल ' ईस नाम से स्पष्ट है कि ये वर्ण स्वर और व्यंजन के बीच के हैं | ईनके उच्चारण में करण का उच्चारणस्थान से थोडा स्पर्श होता है, अत: ईनहे
ईष्त्स्पृट भी कहते हैं.
व्यंजन होते हुए भी य व र ल , कभी-कभी क्रमशः इ उ ऋ लृ ऊ मे बदल जाते हैं,
उच्चारण -: स्थान के विचार से ' य ' तालव्य ,
' र ' मूर्धन्य ,
और ' ल ' दन्त्य तथा व दन्त्योष्ठ्य है | ' व ' का उच्चारण उपर के दंत पर नीचे वाले ओष्ठ से होता है |
उष्मवर्ण -: श ष स ह ये ध्वनियाँ सीटी की तरह निकलती है
' श ' तालव्य है
' ष ' मूर्धन्य है
' स ' दन्त्य है और ' ह ' कण्ठ्य है |
श का उच्चारण तालु से होने के कारण सीटी की तरह ध्वनि निकलती है,
विसर्ग का उच्चारण कण्ठ्य हकार की तरह होता है, और अनुस्वार का उच्चारण केवल नाक से ही होता है |
संस्कृत भाषा में प्रयुक्त होने वाले कुछ संयुक्त व्यंजन आज हिन्दी आदि कतिपय भाषाओं में स्वतंत्र व्यंजन के रूप में प्रयुक्त होने लगे हैं, उदाहरण -: क्ष त्र ज्ञ | ' क्ष ' यह क और ष के योग से बना है , त्र यह त् र् क् के योग से बना है
आदि वैदिक भाषा में तो ' क्ष् ', ' ज्ञ् ' यह शब्द ऊर्ज्क्ञ
संपातिय त्रैक्षणाओं सदृश चुने एवं बुने गये हैं
______________________________________________
पाठ (5) ता. 23_8_2016_रात्रि_8'50
कोई भी वाक्य बनाने में ' क्रिया ' की ही महत्वपूर्ण भूमिका
होती हैं, और वाक्य के क्रिया के कर्ता का भी उतना ही महत्व होता है,
कर्ता , प्रथम पुरूष , मध्यम पुरूष , उत्तम पुरूषों
एवं
एक_ द्वि _तथा_ बहुवचनों के भेद से
अनेक प्रकार का होता है,
उदाहरण -: स: गच्छति
तौ गच्छत:
ते गच्छन्ति
त्वं गच्छसि
अहं गच्छामि
आवां गच्छाव:
वयं गच्छाम:
अहं (हम)
आवाम् ( हम दोनों )
वयम् ( हम सब )
कर्तृपदों के साथ ' उत्तम पुरूषों की क्रिया ' गच्छामि ,
गच्छाव: , गच्छाम: ,
एवं
त्वं , युवाम् , यूयम् ,कर्तृपदों के साथ
मध्यम पुरूषों की
क्रिया गच्छसि , गच्छत: ,गच्छथ का प्रयोग किया गया है
संस्कृत भाषा में क्रियापदों के ईन रूपों के साथ कर्ता एवं
क्रियापद के बीच एक निश्चित सम्बन्ध होता है, यदि कर्ता
अहम्
अवाम्
वयम् , हो तो क्रिया पद वचनों के अनुसार ' उत्तम पुरूष ' का ही लागू होगा
ऐसै ही कर्तृपद
त्वम् _ युवाम् _ यूयम् ___ हो तो क्रिया पद वचनों के अनुसार ' मध्यम पुरूष ' का ही लागू होगा
और अलग प्रकार के कर्तृपदों के साथ क्रिया पद वचनों के अनुसार ' प्रथम पुरूष ' में ही लागू होगा
उदाहरण -: स: | सा | बाल: गच्छति
तौ | तै | बालौ गच्छत:
ते | ता: | बाला: गच्छन्ति
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पाठ नंबर (6) आज दिनांक '27_8_2016_
उपस्थित होने के अर्थ में उपयोग होने वाली ' अस् ' धातु का वर्तमान काल के
' लट् लकार ' के प्रथम पुरुष एकवचन में ' अस्ति ' रूप बनता है, जिसका अर्थ है ' है '
ईसके साथ कर्ता के रूप में तद् सर्वनाम के प्रथमाएकवचन
' पुल्लिंग रूप ' स: ' का प्रयोग होगा एवं वाक्य बनेगा ' स: अस्ति: '= वह है
ईसीप्रकार 'तद् ' शब्द के ही पुल्लिंग में प्रथमा के
द्विवचन एवं बहुवचन के रूप ' तौ , ते ' का प्रयोग होगा और वाक्य ' तौ , स्त: ' =वह दोनो है, और ' ते सन्ति '
= वे है , ' अस् ' धातु लट् लकार के सभी पुरूषों एवं वचनों का प्रयोग बताता हूँ , इन में क्रमशः तद् , युष्मद् , अस्मद्
शब्दों का प्रयोग किया गया है
प्रथम पुरूष :- स: अस्ति = वह है = एकवचन
तौ स्त: = वे दोनो है = द्विवचन
ते सन्ति = वे सब है = बहुवचन
मध्यम पुरूष :- त्वम् असि = तुम हो = एकवचन
युवां स्थ: = तुम दोनो हो = द्विवचन
युयं स्थ: = तुम सब हो = बहुवचन
उत्तम पुरूष :- अहम् अस्मि = मै हूँ = एकवचन
आवां स्म : = हम दोनों है = द्विवचन
वयं स्म: = हम सब है = बहुवचन
करना , करने के अर्थ में प्रयोग होने वाली कृ धातु के वर्तमान काल के
वाचक लट् लकार के तीनो पुरूष एवं सभी वचनों के रूप
बताता हूँ, इनके साथ क्रमशः
तद् , युष्मद् , अस्मद् शब्दों का प्रयोग कीस प्रकार होगा यह बता रहा हूँ
प्रथम पुरूष एकवचन = स: करोति = वह करता है
प्रथम पुरूष द्विवचन = तौ कुरूत: = वे दोनों करते हैं
प्रथम पुरूष बहुवचन = ते कुर्वन्ति = वे सब करते हैं
मध्यम पुरूष एकवचन = त्वं करोषि = तुम करते हो
मध्यम पुरूष द्विवचन = युवां कुरूथ: = तुम दोनों करते हो
मध्यम पुरूष बहुवचन = युयं कुरूथ: = तुम सब करते हो
उत्तम पुरूष एकवचन = अहं करोमि = मै करता हूँ
उत्तम पुरूष द्विवचन = आवां कुर्व: = हम दोनों करते हैं
उत्तम पुरूष बहुवचन = वयं कुर्व: = हम सब करते हैं
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