यह रावण का बनायाहुआ और ऋषि वशिष्ठ द्वारा निर्मित ' सम्ह्तिका ' यान है ,जो _ हम त्रिकाल+चतुर्थ काल 'सन्ध्यावंदन के त्रेक्श्ब्निय कणों के इंधन से चलता है { ॐ उर्र्र्रझ्बनोश्किश्व वेट्टो त्रिकल्जस्य उरुझ्झ्झ्नियो _ यह सामवेद का श्लोक जो बताता है की ' त्रिकाल+तुरीय सन्ध्या वंदन करनेवाले ' विप्र' द्वरा 'सूरज को ' अर्ध्य ' दियाहुआ जल 'उस जल के भीतर के 'सुक्ष्ण वर्तीय पार्टिकल्स_से_ न्द्गिनो'कणों_की_उत्पत्ति_से सूरज को हेलियाँ,फोटोन बनाने में मदद मिलती है ,यह न्द्गिनो*some text missing *_इसीलिए ही हम ' ब्राम्हण { चाहे व् ह सन्यस्त दिक्षा प्राप्त ही क्यों न हो }अपने
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