Friday 9 January 2015

वनचर_+ खेचर'''

आज_ अन्यासीय_प्र्गज्जेंझाना_ विभास_योग्य_भी_नहीं_है_
क्यों''
की''
'' सर्वर्भिन्ज्य्ताये_अपनी_''डफली_अपना_राग_'''''
गाति_रहती_है_
इसीलिए_
तो_
ये विश्व आज भी भिखारी_
और कल''भी
''भिखारी
' ये_कहा_आ_गए_हम_


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